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बेटी तो माँ निकली

गोवर्धनसिंह फ़ौदार “सच्चिदानन्द”

नौकरी के मेरे अभी सिर्फ बीस दिन हीं हुए थे। मैं उन्नीस साल का एक साधारण चपरासी था। शायद इसी कारण विद्यालय के पदाधिकारियों ने मुझे एक चिट्ठी की जानकारी लेने के लिए मुख्य कार्यालय भेजने का निर्णय लिया था। अभी नयी नयी नौकरी लगी थी, और इतनी भी जानकारी नहीं थी मेरे पास कि किधर मंत्रालय है किधर क्या है। आखिर में इससे उससे पूछते दफ्तर तक पहुँच ही गया।
मंत्रालय के मुख्य कर्मचारी ने मेरा स्वागत किया और जानकारी दी कि जिस व्यक्ति से मुझे मिलना है कुछ देर से आयेगा । इस बीच मेरी उनकी बात चीत जारी रही और लगे हाथ उन्होंने मुझे एक छोटा सा काम भी थमा दिया। कुछ चिट्ठियाँ खोलकर देखना था कि किस चिट्ठी में क्या है। मेरी नज़र एक ऐसी चिट्ठी पर गयी जिस में परीक्षा फल के बारे में पूछा गया था।
मैंने इसकी जानकारी सम्बद्ध व्यक्ति को दी। और फिर उन्होंने मुझे निर्देश दिया कि देखो वो बारह नम्बर की फ़ाईल में इसकी जानकारी मिलेगी। वैसे यह काम मेरा तो था नहीं पर लगे हाथ समय भी गुज़र रहा था।नया नया था तो मुझे भी अच्छा लग रहा था।
कोई रानिका नाम की लड़की अपनी परीक्षा के बारे में यह जानकारी पाना चाहती थी कि वह सफ़ल हुई है या फ़िर असफ़ल। मंत्रालय की नीति के मुताबिक पहले सफ़ल फ़िर असफ़ल प्रतिभागियों को परीक्षा फल भेजते हैं। उनके मित्रों को फल प्राप्त हो चुके थे, क्योंकि वह असफ़ल थी इसी कारण परीक्षा फल की जानकारी उसे नहीं थी।
मुझमें उस लड़की से मिलने की आशा जागी। मन मेरा कह रहा था तुम उससे लड़की से मिलो उसका हौसला बढ़ाओ।
चिट्ठी के नीचे उसका फोन नम्बर था। चुपके से नम्बर नोट कर लिया।
इस बीच सम्बद्ध अफ़सर भी आ गये और पहले से उन्होंने सारा कुछ तैयार करके रक्खा हुआ था। बस सम्बद्ध काग़ज़ लेकर धन्यवाद कहकर निकल गया।
दिमाग में हाँ और ना का झगड़ा था। हिम्मत करके फ़ोन किया.. फ़ोन की घंटी बजी फिर जवाब आया..
हैल्लो कौन..
मैंने हिचकिचाते हुए कहा… नमस्ते.. मैं.. मै हूँ सच्चिदानन्द..
जी क्या काम है.. आपको बताइये..
क्या चाहिए..
मैं सीधे विषय पर उतर गया और कहा.. जी.. जो परीक्षा आपने दी थी..
उधर से वो बोली… जी… परीक्षा…
मैंने कहा जी..
उसमें आप असफल हुई है.. घबराने की.. कोई बात नहीं सब ठीक हो जायेगा।
रानिका ने कहा… जी.. जी..
जी धन्यवाद..
मन मेरा खुश हो गया।
इस छोटी सी मुलाकात ने हम दोनों के बीच एक सम्बन्ध बना दिया।फिर रोज़ रोज़ फ़ोन… और रोज़ रोज़ की बातों ने हमें काफ़ी करीब कर दिया।
ऐसा करते तीन महीने हो गये। अब मुझे उस सत्रह साल की रानिका से मिलना था। रानिका दक्षिण और मैं पूरब प्रान्त का रहने वाला था। मैंने उससे मिलने की इच्छा बतायी। वो कहती माँ… तो भाई… तो दीदी… ।मुझे कुछ सही नहीं लग रहा था अब… ।मैंने रानिका से पूछा क्या तुम मुझसे प्यार करती हो? जवाब आया हाँ मैं आपको बहुत चाहती हूँ।
मैंने कहा तो फिर मैं तुमसे मिलने आऊँगा.. शनिवार तारीख १२को मुझे क्यूरपीप के बस अड्डे पर मिलना।
मैंनें कहा एक लाल कमीज़ में तुम मुझे पहचान जाओगी। साथ में काले रंग का मेरे काम का बसता भी होगा। मैं दिन के ठीक दस बजे निर्धारित जगह पर आ जाऊँगा। रानिका को इतना सारा कुछ बताते हुए मैंने उससे पूछा तुम तो आ जाओगी न!!! उसने भी अपने कपड़े, बसते का रंग बताया। दिन आने पर मैं दस बजे से पहले ही वहाँ पहुँच गया।
अब तक मुझे बताये गये रंग की कोई लड़की नज़र नहीं आयी थी।
मैंने फ़ोन लगाया और फ़िर नज़र को इधर उधर दौड़ाने लगा… कोई थी ऐसी जो लगा मुझसे ही वार्तालाप कर रही थी।
धीरे धीरे उसके पास पहुँचा। फ़िर सोचने लगा किसी भी तरह लड़की तो वो है नहीं, तो ये फ़िर है कौन…?
मन मेरा घबराया हिम्मत करके उसके पास फ़ोन पर बात करते गया…। आमने सामने हो गया। मेरे पूछने से पहले उसने पूछा.. सच्चिदानन्द हो आप…बिना जवाब दिये मैंनें उससे पूछा आप कौन..?? हम एक दूसरे को ताकते रह गये… तब मुझे
पता चला चिट्ठी में फ़ोन नम्बर माँ का था. .फोटो भी माँ ने ही अपनी जवानी का मुझे भेजा था… और रोज़ मेरी बातें माँ से हो रही थी😢

(गोवर्धनसिंह फ़ौदार “सच्चिदानन्द”)
पता : मॉरीशस ।

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प्रबंध निदेशक/समूह सम्पादक दि ग्राम टुडे प्रकाशन समूह

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