आशा उमेश पान्डेय अविरल
आज एक ऐसा संस्मरण लेकर उपस्तिथ हूँ आप सब के समक्ष ये घटना आज से लगभग छ: साल पुरानी है। मैं रोज की भांति सुबह आठ बजे स्कूल के लिए घर से निकली । बस स्टैंड गयी बस में बैठी और स्कूल चली गयी। हमारा स्कूल हमारे घर से लगभग पैतीस किलोमीटर दूरी पर स्थिति है। रोज की तरह ही उस दिन भी मैं पूरे जोश से भरपूर थी । हंँसी खुशी स्कूल पहुंँच गयी।उसके एक दिन पहले तीज का व्रत था और दूसरे दिन पारन था। पारन भी नहीं किये स्कूल पहुंच गये। हमारे ब्लाक में अपर कलेक्टर साहब का दौरा था।इसकी जानकारी हमारे ब्लॉक केे सभी कर्मचारियों को हो गयी थी ।सभी अपनी डियूूटी में मुस्तैद थे। शाम चार बजे स्कूल से निकली थोड़ा बस का इंतजार किया बस आयी बस में बैठ कर घर के लिए चल दी। थोडी़ दूर बस चली होगी की अचानक बस खेत में तीन पलटी पलट गयी। मुझे कुछ याद नहीं की बस कैसे पलटी, मुझे कितनी चोट लगी, बाकी लोगो का क्या हुआ। मेरी सहकर्मी जिनका स्कूल मेरे स्कूल से आधा किलोमीटर दूरी पर था। उन्होंने मेरे घर वालों को इस घटना की सूचना दी और घर वाले आनन- फानन में घटना स्थल तक पहुँचे। वो दिन मेरे परिवार और मेरे लिए काली रात बनकर आयी थी। आज भी जब उस घटना का जिक्र होता है तो मेरे रोगटे खड़े हो जाते है।
जब मैं थोड़ी ठीक हुई तो मैंने घर वालों से घटना के बारे में पुछा। मेरे पति ने मुझे बताया की तुम्हें घटना स्थल के पास ही बेहोशी की हालत में रोड़ के किनारे सुलाया गया था। और बाकी सभी अपने अपने घर चले गये। उस दुर्घटना में किसी को कुछ ज्यादा नहीं हल्के फुलके चोट आये थे पर मेरी किस्मत इतनी खराब की सबसे ज्यादा चोट मुझे ही लगी थी। मैडम मुझे लेकर रोड में बैठी थी ।मेरे घर वाले मुझे तुरंत नजदीकी जिला अस्पताल में भर्ती कराए। डाक्टरो से बताया की मेरे ब्रेन की नसे क्रेक हो गयी है । डाक्टर आपरेशन की सलाह दे रहे थे। उस दौरान मेरी यादाश्त चली गयी थी। मैं न किसी व्यक्ति, न किसी वस्तु को पहचान पा रही थी। लगभग छ महिने बाद मुझे कुछ कुछ समझ आने लगा और मेरी यादाश्त भी आने लगी। लगभग आठ महिने बाद मैं स्कूल ज्वाइन की और डर की तो पुछो ही मत। आज भी गाड़ियों को देखकर घबराना और चिल्ला उठना मानो अभी दुर्घटना हो रही है। और आज तक मैं ब्रेन की दवा ले रही हूँ डाक्टर के परामर्श पर हूँ।
ये मेरे जीवन का कभी न भुलने वाला संस्मरण है।
रचनाकार–आशा उमेश पान्डेय अविरल
सरगुजा छत्तीसगढ़