प्राची अग्रवाल
सितंबर 2016 में हमने अपने परिवार के साथ माता वैष्णो देवी धाम कटरा जम्मू जाने का कार्यक्रम बनाया। हमारे साथ एक और परिवार भी था। हम बहुत खुश थे कि हम माता के दरबार जा रहे हैं। खुशी-खुशी हमने सारी पैकिंग कर ली और रात को उधमपुर एक्सप्रेस से जो हमें खुर्जा जंक्शन पर रात 11:30 बजे मिली। उसमें बैठकर हम अपने गंतव्य पर रवाना हो गए। मन में बहुत उमंग थी। उस समय चिकनगुनिया नामक महामारी अपने पैर फैलाई हुई थी। हम सब लोग स्वस्थ थे इसलिए हमें कोई चिंता नहीं थी। ऐतियात के तौर पर हमने जरूरी दवाई गोली अपने साथ रख ली।
सबसे पहला झटका तो रात को ही लगा जब हमारे साथ दूसरे परिवार के साथ आई बिटिया दुर्गा के हाथ के ऊपर खिड़की अचानक से गिर पड़ी। देवी स्वरूप दुर्गा के हाथ में चोट लग गई।
सुबह हम जम्मू तवी रेलवे स्टेशन पर उतर गए। वहां से हमने बस लेकर कटरा के लिए प्रस्थान किया। रास्ते में बहुत सुंदर नजारे थे। रेल और बस कई जगह टनल में से भी निकाल कर गई।
लगभग ढाई तीन घंटे बाद हम कटरा पहुंच चुके थे। बस स्टैंड से ही बहुत सारे एजेंट पीछे घूमते रहते हैं रूम बुकिंग के लिए। ऐसे ही हम भी एक एजेंट के चक्कर में आ गए। उसने हमें सस्ते कमरे का लालच और गाड़ी सर्विस प्रोवाइड करने की बात कही। लेकिन वह हमें अपनी टैक्सी में बहुत दूर एक सामान्य से होटल में छोड़ आया। चलो कोई बात नहीं हमने सब स्वीकार कर लिया। यात्रा के समय हम सबने प्लान बनाया कि हम चढ़ाई हेलीकॉप्टर से करेंगे। हमने अपनी ऑनलाइन बुकिंग तो कराई नहीं थी। सीधे ही हम हेलीपैड पर पहुंच गए। लेकिन वहां जाकर पता चला की ऑनलाइन वालों को वरीयता दी जा रही है। हम कई घंटे बैठे रहे लेकिन हमारे हेलीकॉप्टर में बैठने का अरमान अरमान ही रह गया। हेलीकॉप्टर हमने बहुत नजदीक से उतरते देखें।
दोपहर बाद मायूस होकर होटल वापस लौट आए। हेलीकॉप्टर के चक्कर में हमारा पूरा एक दिन बर्बाद हो गया। हमने रात को अपनी चढ़ाई यात्रा प्रारंभ ही नहीं की थी। फिर शाम को हम चढ़ाई के लिए निकले। लेकिन मुझे अपने स्वास्थ्य में कुछ परेशानी महसूस होने लगी। मेरी टांगों में एक अजीब सा दर्द उठ रहा था। मैंने सोचा पहाड़ी इलाका है शायद यह बजह होगी। लेकिन दर्द और बढ़ गया और मुझे बुखार भी चढ़ गया। इसलिए मैंने चढ़ाई के लिए घोड़ा ले लिया। बाकी सब पदयात्रा कर रहे थे। अर्धकुंवारी पर पहुंचकर मैं उतर गई और बाकी सब लोगों के आने का इंतजार करने लगी। थोड़ी देर बाद मेरे पति मेरे छोटे बेटे के साथ भी घोड़े पर आए थे। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि मेरे पति हर साल वैष्णो देवी यात्रा पैदल चढ़ाई करके ही पूरी करते थे। जब यह घोड़े से उतरे इनको बहुत सर्दी लग रही थी। इनका पूरा शरीर बुखार से भुन रहा था। हम समझे ही नहीं कि हम दोनों को चिकनगुनिया हुआ था। वह तो दवाई मेरे पास थी हमने उन्हें अपने आप खा लिया। अर्धकुंवारी पर नियमित रूप से रोज बारिश होती है। और वहां ठहरने की व्यवस्था भी उचित नहीं है। मंदिर की तरफ से एक बहुत बड़ा हाल है जो रात को श्रद्धालुओं से खचाखच भरा जाता है। उस पर ₹100 देकर सीलन वाले कंबल मिलते हैं, जो सुबह को जमा करने पर पैसा वापस कर देते हैं।
अर्धकुंवारी से निकलते समय मुझे बहुत जोर का चक्कर आ गया था। सबने यात्रा रद्द करने का विचार कर लिया। लेकिन मैंने हिम्मत करके कहा कि मैं मां के दरबार से बिना दर्शन करें नहीं जाऊंगी। मैंने बहुत हिम्मत करी और वहां से हमें भवन के लिए बैटरी गाड़ी मिल गई। जिसमें बैठकर हम बहुत जल्दी भवन पर पहुंच गए। सितंबर के महीने में भीड़ बहुत कम रहती है। हमने हिम्मत करके और माँ की कृपा से गुफा में प्रवेश कर लिया और सुंदर दर्शन भवन के सुंदर दर्शन भी कर लिए।
फिर भैरो यात्रा पर भी हमने घोड़े कर लिए और मैंने बिल्कुल भूखे पेट राधा अष्टमी वाले दिन अपनी यात्रा पुरी की। भैरव पर भी दर्शन हो गए। फिर हम घोड़े से उतरकर नीचे आ रहे हैं। घोड़े पर बैठे-बैठे शरीर बहुत थक जाता है। बहुत जगह तो हमने घोड़े से उतरकर पैदल यात्रा भी की। उस समय हमें बुखार था इसलिए घोड़े उपलब्ध कराए गए वरना मेरे परिवार वाले घोड़े पर यात्रा करना पसंद नहीं करते हैं।
चिकनगुनिया के कारण मुंह का स्वाद बिल्कुल खराब हो गया था। पूरे मुंह में छाले भर गए थे। नमक की चीज कड़वी महसूस हो रही थी। लौटते- लौटते मेरी तबीयत और ज्यादा खराब हो गई। अगले दिन जम्मू से दोपहर की ट्रेन थी। इत्तेफाक से हम पहुंचने में भी लेट हो गए। ट्रेन बिल्कुल छूटने वाली थी। बहुत मुश्किल से हमने उस ट्रेन को पकड़ा और घर पर से सकुशल मंगल वापस आए।
सफर करते समय हम बहुत अच्छे मन से घर से निकलते हैं लेकिन अगर हमारी खुद की तबीयत ही सही ना हो तो सफर का आनंद हम नहीं उठा पाते हैं।
प्राची_अग्रवाल
खुर्जा उत्तर प्रदेश