डा मधुबाला सिन्हा
मेरे मायके में घर के तीन तरफ बगीचा और सामने खेत है।बगीचा में तरह तरह के पेड़ पौधे लगे हैं।आगे खेत में बहुत आगे जाकर ईट की चारदीवारी बनी है और उसी में बोरिंग करवा कर पांपिंगसेट लगा है, जिसे चलाकर खेत और बगीचा को पानी दिया जाता है। पर जब आम,अमरूद, अनार, पपीता,आंवला,नारियल, लीची, गुलर आदि फलते हैं तो बंदरों की आवाजाही शुरू हो जाती है ताकि फल को कुतरते रहें।और खेतों में जब मक्का लगता है तो बंदरों के साथ तोता का भी आवाजाही शुरू हो जाता है।मक्का के दूधमुंहें दानों को कुतरते रहते हैं।इन्हें भगाने के लिए गुलेल का प्रयोग होता है।गुलेल वह साधन है जो चमड़े और लकड़ी की मदद से बनाया जाता है और गोली की जगह,मिट्टी की गोली होती है जो दूर तक वार करता है और इससे से चोट भी तगड़ी लगती है।
बात उस समय की है जब मैं पांच वर्ष की थी।बच्चों के साथ खेल रही थी।बंदरों का उत्पात था।कच्चे आमों की अमिया बर्बाद कर रहे थे।दादा जी गुलेल से बंदरों को भगा रहे थे।तभी एक बंदर जाने कैसे मेरे पास आ गया।मेरा हाथ पकड़ कर बैठा दिया और मेरे सिर से जुएं निकालने लगा। मैं जोर जोर से रोती रही और बंदर जुएं निकलता रहा।जब मैं हिलती तो मुझे थप्पड़ लगा देता ।मैं और भी जोर जोर से रोने लगती।जब जुएं सिर में नहीं मिलते तो वह मुझे पकड़ कर अपना चेहरा सामने लाता और दांत निकाल कर डराता। मां,दादा जी ,भाई सभी डरे हुए उसे भागने का यत्न करते रहे और वह मुझे जोर से पकड़ कर उन्हें और डराता।करीब बीस मिनट तक चले इस खेल में उसे जुएं मिलें या नहीं,पर मुझे कमबख्त रूला जरूर गया था । मैं बेजार होकर रोती रही थी। फिर अचानक मुझे छोड़ वह पेड़ पर चढ़ इस डाल से उस डाल कूदते भाग गया।तब जाकर सभी के जान में जान आई।
( एक खबर पढ़ी थी कि बारहवीं में पढ़ने वाली एक छात्रा को बदरों ने मार डाला।मुझे यह वाकया याद आ गया जो मां हमेशा बताया करती थी,जब बंदरों का हमला बगीचे में होता था ।)
डा मधुबाला सिन्हा
मोतिहारी,चंपारण
बिहार