१) अपना संक्षिप्त परिचय दें :-
मेरा नाम शोभा सोनी हैं,मेरे पति का नाम कैलाश सोनी है, में एक गृहणी हूँ, मेरे दो बेटे हैं । जूझे साहित्य में रुचि हैं। कविता,कहानी,लघुकथा संस्मरण,घनाक्षरी,चौपाई ,गीत ,भजन,आदी लिखने का बहुत शौख है।
२) आपका आगमन साहित्य के आँगन में कब हुआ? अर्थात् आपने कब से लिखना आरंभ किया?
साहित्य के आँगन में मेरा पहला कदम 14,फरवरी सन 2021 में पड़ा,औऱ मेने 18 फरवरी से लेखन आंरभ किया।
३) आप कौन कौनसी विधा में लेखन करते हैं, अपनी किन्हीं श्रेष्ठ एक दो रचनाओं को हमारे बीच साझां करें।
मुझे कविता ,घनाक्षरी ,गीत,माहिया सकारात्म सोच वाली रचनाएँ व प्रकृतिक श्रगार पर रचनाएँ लिखने का शौख हैं। मेरी पहली घनाक्षरी,कलम शब्द पर हैं।
*कलम*
(1)
✍️कलम जो बोलती है, शब्दो को ये तोलती है, भेद सारे खोलती है, छुपे हुए राज के।✍️
,✍️तीर से भी तेज है ये,चाकू से भी भारी है ये,करती है कत्ल देखो ,बिना किसी वार के।✍️
इसका सम्मान करो,नित नमस्कार करो,जीवन सफल करो,कलम चलाए के।✍️
✍️नाम तुहारा हो जाए,काम तुम्हारा हो जाए,शोभा कहे छुलो नभ, इसे अपनाई के।✍️
(2)
ताँटक छंद
हरि नाम
भज हरि हरि,मन होय खरी,हरि नाम से नाता है।
हरि मेरे ह, हरि तेरे ह ,सारा जग ये गाता है।
हरि प्रेम है, हरि नेम है, हरि सुख के दाता है।
हरि पास है, हरि खास है, हरि भगय विधाता है।
हरि राग है,हरि गीत है, हरि छंद के ज्ञाता हैं।
हरि मीत है,हरि जीत है, हरि प्राण के दाता है।
(3) जीवन गलीचा
जिंदगी की जंग में रिश्ते पीछे छूट गए
नई कहानी लिखने ,किस्से पीछे छूट गए
बढ़ती रही दूरियां दीवारों में दरारों की तरह
ख्वाब पूरे करने में सुकून पीछे छूट गए।
बनावटी असल लगा चमकीली लिबाज में
लालच में ऐसे डूबे ईमान पीछे छूट गए
चढ़ते रहे शिखर पर उड़ते परिंदे की तरह
मंजिल की तलाश में रास्ते पीछे छूट गए।
माया में लिप भूले अपने सच्चे स्वधर्म को
जीवन गलीचा सजाने में संस्कार पीछे छूट गए।
(4। गजल
बहुत बन गई सरहदे अब धटनी चाहिए
देश के टुकड़ो की रेखा अब मिटनी चाहिए ।
लिख देना इंकलाब हर खून के कतरे में
आजाद हिंद की एकता अब जुटनी चाहिए।
मिटे नफरते दिलो से घटे खून खराबा
अखंड भारत की तस्वीर न अब कटनी चाहिए।
हम खोय नही विरो को कुर्बानी के नाम पे
बहन बेटियां वतन की अब न लूटनी चाहिए।
हो सनातनी संस्कार हर एक हिंदुस्तानी में
लव जिहाद की बीमारी में बेटियां न अब पटनी चाहिए।
करो वादा खुदसे सच्चा लीडर ही चुनेंगे
लालच में देश भक्ति ईमान न अब धटनी चाहिए।
(5) विषय– श्रृंगार रस
शीर्षक—- मिलन
तुम जब पास होते हो,
जीवन स्वप्न सा लगता हैं।
तुम्हरा गजरारा बदन खिलते कमल सा लगता हैं।
तुम्हारे माथे की बिंदिया गजब चाँदनी बिखरती हैं,
तुम्हारे मुख मंडल की आभा में चाँद भी फीका लगता हैं।
तुम्हारे कानो के झुमके रुख़सारो को चूम चुम के, इठलाते हैं हमारा धीरज छूटने लगता हैं।
तुम्हारी चूड़ियों की खनक की सरगम में मन डूब जाता हैं,
तुम्हारी जुल्फों की छाव में खो जाने को दिल करता हैं।
जब तुम साथ होते हो,नयन तुम्ही को तकते हैं
सारे हसीन नजारों में मुझे चहरा तेरा ही दिखता हैं ।
तुम्हारी मीठी आवाज रस कानो में घोल देती हैं,
तुझमे मुझे हर मय से ज्यादा नशा लगता हैं।
निगाहे मिलाकर जब शर्माती हो तुम
कसम से इस दिल पर बिजलियाँ गिर जाती हैं,
तुम्हारे करीब जब आता हूँ जन्नत सा सुकून मिलता हैं।
(6) शुभ सुप्रभात
जननी तात के चरणों मे ‘में,नित् नमन करती हूँ।
गुरुवर की चरण वंदना कर नित् आशीष पाती हूँ।
ईश्वर की कुदरत का में सम्मान जताती हूँ।
इसीलिए प्रकृतिक सुंदरता का में गुणगान गाती हूँ।
सूर्य चाँद तारो की महिमा में नित गा सुनाती हूँ
सुंदर नदियाँ सागर पर्वत ,व्योम को शीश झुकाती हूँ।
मित्र रिपु प्रिय परिजनों को नेह प्रणाम करती हूँ
“में, शोभा नित भोर की मनोहारी शोभा गीत गाती हूँ।
४) आप नवोदित रचनाकारों को अपने साहित्यिक अनुभव द्वारा क्या सुझाव देना चाहेंगे?
में नवोदित साहित्य प्रेमियों से सिर्फ इतना लहा चाहती हूं,की,अपने अनुभवों को इतिहास की गाथा में जरूर सांझा करे ताकि आने वाली पीढ़ी को संकारो के साथ-साथ जीवन जीने व जीवन शैली समझने में आसानी हो सके।
६) आपके अनुसार हिंदी के उत्थान हेतु साहित्यकारो को किस तरह कौनसा कार्य करना चाहिए?
हमारी सोच के हिंसाब से हिंदी के उत्थान के लिए हमे ज्यादा से ज्यादा हिदी को उपयोग में लाना चाहिए ,और अपने बच्चों को भी हाय की बजाय अपनी मात्र भाषा मे जय श्री कृष्ण राम-राम या राधे राधे बोलना सिखाना चाहिए, उन्हें हिंदी के महारथियों की कहानियां भी सुनानी चाहिए। क्योकि वर्तमान समय मे इंग्लिश की चकाचौंध में हिंदी जैसे विलुप्त सी हो गई है समय की मांग हैं हिंदी को राष्ट्रीय भाषा घोषित कर देना चाहिए।क्योंकि हिंदी भाषा ह्रदय को स्पर्श करती हैं।
७) क्या आप इस बात से सहमत हैं कि हम अपनी कलम की मदद से सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं यदि हाँ, तो कैसे?
हा में इस बात से पूर्ण तह सहमत हूँ,
क्योकि किसी भी भाषा का विस्तार उसके अधिक उच्चरण पर निर्भर करता है या अध्धयन पर करता है, साहित्यकार यदि अपनी कलम से भावनात्मक व ज्ञानवर्धक काव्य का सृजन करेंगे तो पढ़ने वाले भी उसे शांत चित्त मन से श्रवण करेंगे और जो चीज प्रेम से श्रवण की जाय जीवन भर उसकी इस्मार्ती बनी रहती हैं।
अंत में एक आखिरी प्रश्न कहिए या सुझाव जो हम आपसे जानना चाहते हैं?
शब्द कोष अनन्त है, नदी ,सागर समाए
चतुर गोते ज्ञान ले,मूरख व्यर्थ बहाए
सुझाव–दी ग्राम टुडे प्रकाशन समूह एक बहुत ही नेकी का कार्य कर रहा है इससे रचनाकारों की अभिव्यक्ति को तो विस्तार मिलता हैं औऱ साथ-साथ हिंदी भाषा को भी विस्तार मिल रहा है में दी ग्राम टुडे के इस कार्य के लिए उनकी टीम का बहुत बहुत आभार व्यक्त करती हूँ।
औऱ शुभकामनाएँ देती हूँ कि ऐसे ही ऊंचाइयों की और बढ़ते रहो।👏
शोभा सोनी