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साक्षात्कार साहित्यकार का:विवेक कुमार

१) संक्षिप्त परिचय –
नाम – विवेक कुमार
माता का नाम -मीना देवी
पिता का नाम- महेंद्र साह
विवाहित/विवाहित- विवाहित
पति/पत्नी का नाम -खुशबू कुमारी
जन्मतिथि -05/12/1983
जन्म स्थान -करजा,मड़वन, मुजफ्फरपुर
शिक्षा- एम.ए . सह शिक्षा स्नातक
रुचि- लेखन एवं पठन
पेशा-वर्तमान में शिक्षक के पद पर उत्क्रमित मध्य विद्यालय,गवसरा मुशहर में पदस्थापित हूं।

२) आपका आगमन साहित्य के आँगन में कब हुआ? अर्थात् आपने कब से लिखना आरंभ किया?

मेरे साहित्य जीवन की शुरुआत कोरोना काल से हुई। पहले से लिखने का शौक/ रुचि था। समयाभाव के कारण जीवंत कर नहीं पाया मगर कोरोना कल में मिले खाली समय अपनी लिखने को सुदृढ़ करने में लगाया। अपनी रुचि को अग्रसारण करने का सुनहरा अवसर था जिसका मैंने भरपूर फायदा उठाया। कोरोना कल में ही मैंने धीरे-धीरे अपनी लिखने को सुदृढ़ करता गया। अब लेखनी के इस मुकाम तक आ पहुंचा हूं।

३) आप कौन कौनसी विधा में लेखन करते हैं, अपनी किन्हीं श्रेष्ठ एक दो रचनाओं को हमारे बीच साझां करें।

मैं अपनी लेखनी में स्वतंत्र विधा का इस्तेमाल करता हूं।
मैंने अभी तक 100 से अधिक कविताओं को प्रकाशित कराया है कुछ कविताएं प्रकाशित होने की दौड़ में है साथ ही साझा संकलन में होम रूल प्रकाशन के तहत मेरी रचना पिता संकलित होकर प्रकाशित हो चुकी है साथ ही 25 से ऊपर साझा संकलन प्रकाशित हो चुकी है। मेरी रचनाएं पत्रिका एवं न्यूज पेपर में भी प्रकाशित हो चुकी है।
मेरी कुछ रचनाएं*–
( 1 )
कुछ कर गुजरने की हसरत अभी बाकी है

ऊपर वाले ने कुछ सोच कर, हमें बनाया होगा,
नाक नक्श संग संस्कारों का, साज सजाया होगा,
मिट्टी के पुतलो में रंगों की, छांटा बिखेरा होगा,
बड़े अरमानों से अपने दिल में, सपने संजोया होगा,
हसरतें तो बहुत थी, परवान चढ़ाना बाकी है।
कुछ कर गुजरने की हसरत अभी बाकी है।।

दिया होगा, सत्य पर चलने की सनक खास,
बनाकर एक बेहतर इंसान, पुतले में डाला होगा जान,
प्रकृति की रक्षा करेगा, बनाकर एक अपना मुकाम,
रंगमंच का भावी वजीर, करेगा भावनाओं का सम्मान
दिन फिर बहुरेंगे, फिर बदलेंगी फिजाएं धारा की,
हसरतें तो बहुत थी, परवान चढ़ाना बाकी है।
कुछ कर गुजरने की हसरत अभी बाकी है।।

इतनी आशाएं, आकांक्षाओं से लदा आया हूं इस कर्मधाम में,
लेकर एक विश्वास प्यार की, बंधी थी एक डोर,
इतनी बड़ी जवाबदेही थी मिली, सोंचा कैसे चुका पाऊंगा,
था अपना रोल जो मिला, खुद कैसे निभा पाऊंगा
असत्य के सागर में अपना, सत्य के गोते लगा पाऊंगा,
प्रकृति के भक्षकगण से, रक्षा कैसे कर पाऊंगा,
हसरतें तो बहुत थी, परवान चढ़ाना बाकी है।
कुछ कर गुजरने की हसरत अभी बाकी है।।

पूछ जब अंतरात्मा से अपने, पाया एक ही ज्ञान,
सबको न मिल पाता है, इस रंगभूमि की शान,
कर्म पथ पर पग तो बढ़ाओ, मिलेगा जग में मान,
संस्कारों की बात कहां, रग-रग में सबके बसता है,
ढूंढ पाए वो शक्स खड़ा है, लिए जान में जान,
कमर कस मैं खड़ा हो गया, लेकर प्रभु का नाम
हसरतें तो बहुत थी, परवान चढ़ाना बाकी है।
कुछ कर गुजरने की हसरत अभी बाकी है।।
मिले ज्ञान से सीख ले, लिया कर्म को साथ,
ठान लिया जब मैने तो, पाऊंगा अब मंजिल तमाम,
मिले जीवन को सरस बनाकर, दूंगा एक संदेश,
कर्तव्य से न कभी डिगूंगा, देता हूं विश्वास,
बड़ों के आशीष को पाकर, फूला न समा पाऊंगा,
हसरतें तो बहुत थी, परवान चढ़ाना बाकी है।
कुछ कर गुजरने की हसरत अभी बाकी है।।

रंगमंच से जो सीखा मैंने, आज ये साझा करता हूं,
कर्म करता हूं करूंगा, भटकूंगा न पथ से अपने,
सहयोग की भावना दिल में भरी हो, भाव ऐसी ही रखता हूं,
सीखा जिनसे सबकुछ, उन गुरुओं का आभार करता हूं,
हसरतें तो बहुत थी, परवान चढ़ाना बाकी है।
कुछ कर गुजरने की हसरत अभी बाकी है।।

अंत में यह प्रण लेता हूं, करूंगा दायित्वों का निर्वहन,
सत्य को दिल से सजादा करूंगा, दूंगा उसका साथ,
गुरुओं का सम्मान करूंगा, नमाऊंगा अपना शीश,
ऊपर वाले की आस भरूंगा, चाहे मांगनी पड़े भीख,
हसरतें तो बहुत थी, परवान चढ़ाना बाकी है।
कुछ कर गुजरने की हसरत अभी बाकी है।।

       ✍️ विवेक कुमार

           ( 2 )

    💞बेटियाँ 💞

माँ बनकर मुझे जन्म दिया,
बहन बनकर किया दुलार |
जब भी आई मुसीबत मेरे,
पत्नी बन किया उद्धार।

सुबह की किरणों जैसी बेटी,
ताजगी देती तन- मन को |
पास जब तुम मेरे होती,
झेल लेता तकलीफों को।

कलयुग की हकीकत को,
कैसे मैं वर्णन कर पाऊं |
दुनिया बदल गया इतना,
फिर भी देख क्यों सरमाऊं |

आज की दुनियां में भी,
अब आगे बढ़ती बेटियाँ |
मान-सम्मान, दुःख दर्द में भी,
आगे रहती हरदम बेटियाँ |
विवेक कुमार

           ( 3 )

आन बान आउर शान बा

आन बान आउर शान बा,
तिरंगा हम्मर जान बा,
मर जाईब, मिट जाईब,
इसकी खातिर दुनिया से
भी लड़ जाईब,
सर पे कफ़न हाथ में कलम की धार बा,
सच्चाई, ईमानदारी, अहिंसा हम्मर पहचान बा,
लोकतंत्र हमनी के सम्मान बा,
बसुधैव कटुंबकम, बंधुता रग रग में बसल बा,
मिट्टी की सौंधी खुशबू जिसका स्वाभिमान बा,
ओ कोई और नहीं हमर हिंदुस्तान बा,
आजादी के लिए कुर्बान,
वीरों की शहादत पर गर्व बा,
फर्ज की खातिर सभी जन,
जहां तिरंगे को कफन बनाने की रखते चाह बा,
उस राष्ट्र पे हमें नाज बा,
जहां गांधी, सुभाष, भगत जन्म लिए,
जान हथेली पर लिए हुए,
अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए,
उन नामों पर हम सब को गर्व बा,
आन बान आउर शान बा,
तिरंगा हम्मर जान बा।
विवेक कुमार

४) आप नवोदित रचनाकारों को अपने साहित्यिक अनुभव द्वारा क्या सुझाव देना चाहेंगे?

नवोदित रचनाकारों को मैं यही कहना चाहूंगा कि सतत प्रयास करते रहना चाहिए। कभी हार नहीं मानना चाहिए। कलम की ताकत से बड़ी कोई ताकत नहीं । अपने बातों को एवं समाज की कुरीतियों को कलम की धार से ही तेज किया जा सकता है । सबसे बड़ी ताकत लेखक की कलम की ताकत होती है। हौसला एवं हिम्मत रख अपने लेखन शैली को सुदृढ करते रहना चाहिए। लेखन की कला अंदर की एक आवाज होती है जिसे कोई भी जब चाहे शुरू कर सकता है मगर उसकी रुचि उसमें होनी चाहिए। अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का एक बेहतरीन प्लेटफॉर्म है। हमें खुद एवं दूसरों को भी इस प्लेटफार्म के माध्यम से जागृत करना चाहिए।

६) आपके अनुसार हिंदी के उत्थान हेतु साहित्यकारो को किस तरह कौन सा कार्य करना चाहिए?

सभी नवोदित रचनाकारों को कहना चाहूंगा कि हमेशा रचना करते रहें। किसी विषय पर बतौर प्रतियोगिता अपनी रचना का सृजन करते रहना चाहिए। रचना के अर्थ में कुछ न कुछ संदेश छुपा होता हैं । साथ ही अपनी रचना की खुद समीक्षा भी करें और उत्साहित होकर हिंदी के क्षेत्र में बेहतर से बेहतर कार्य करें।
“जला लो मन में लेखन की आग”
जब तक बुझे न चिता की चिराग”

७) क्या आप इस बात से सहमत हैं कि हम अपनी कलम की मदद से सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं यदि हाँ, तो कैसे?

मैं समाज से यह कहना चाहता हूं कि कलम की धार से हम अपने समाज में फैले कुरीतियों को मिटाने में सक्षम हो सकते हैं। एक दूसरे में भाईचारा का बिगुल बजाने में भी हमारे लेखनी का काफी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। लोगों की सोच को बदलने के लिए उनके मन में देशभक्ति की भावना जागृत करने का एक सबसे सफल एवं सरल माध्यम लेखन ही है। लेखन ऐसा माध्यम है जिस माध्यम से हम समाज को जगा सकते हैं साथ ही कुरीतियों को मिटाने हेतु सक्षम हो सकते हैं।

अंत में एक आखिरी प्रश्न कहिए या सुझाव जो हम आपसे जानना चाहते हैं

क्या दि ग्राम टुडे प्रकाशन समूह आप रचनाकारों के लिए कुछ बेहतर कर पा रहा है? यदि हाँ, तो हमें अपना सुझाव दें अथवा नहीं तो बताएं कि हम कैसे अपने प्रकाशन समूह में कुछेक बदलाव ला सकते हैं?

जी हां मैं दी ग्राम टुडे से पहले से ही जुड़ा हूं और उनसे जुड़ने के बाद प्राप्त अनुभव के आधार पर यह कहना चाहता हूं कि दी ग्राम टुडे मंच नवोदित रचनाकारों के लिए एक बेहतरीन प्लेटफार्म तैयार करता है साथ ही बेहतर से बेहतर करने की प्रेरणा देता है।

The Gram Today
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प्रबंध निदेशक/समूह सम्पादक दि ग्राम टुडे प्रकाशन समूह

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