साक्षात्कारकर्ता : चेतना अग्रवाल
- नमस्कार, कैसे हैं आप ?
सादर नमस्कार। बस कुशल मंगल हूँ। ईश्वर का आशीर्वाद है, स्वस्थ हूँ सुरक्षित हूँ।
- सबसे पहले आप हमारे पाठकों को अपने बारे में, परिवार के परिवेश के बारे में कुछ बताइये ?
अवकाश प्राप्त, मोरिश्यस निवासी,हिन्दी प्रेमी।” हिन्दी साहित्य सम्मेलन” प्रयाग से “साहित्य रत्न” । धार्मिक शिक्षा :अखिल भारतीय आर्य हिन्दू धर्म सेवा संघ दिल्ली से। मेरा नाम गोवर्धन सिंह फ़ौदार है।”सच्चिदानन्द” नाम से लिखता हूँ। साधारण परिवार में मेरा जन्म हुआ। मेरे पूर्वज़ बिहार के छपरा ज़िले से थे।
पिता जी का नाम त्रिभुवनसिंह तथा माता का नाम राजवन्ती था।
- आपने सर्वप्रथम कब और कैसे लिखना शुरू किया ?आपको किन किन लोगों ने सीखने में और आगे बढ़ने में सहयोग दिया।
मेरी रूची बचपन से हीं संगीत में थी। मैंने संगीत की शिक्षा महात्मा गाँधी संस्थान से पायी। यहीं से मेरे लिखने की रूची बढ़ी और भजन, गीत आदि लिखने लगा। फिर समय चलते कविता, संस्मरण, लघुकथा, बाल गीत आदि लिखना आरम्भ किया। मेरे वास्तविक गुरु भारत की कुछ साहित्यिक संस्थाएँ हैं। जिनमें “मंथन, जागरण, वर्तिका, साहित्य सुधा मंच और आभा के साथ मेरा भी एक पटल है” आधुनिक भारत की कवि गोष्ठी”नाम से “आदि हैं।
- लिखने से पहले, लिखते समय और लिखने के बाद आपकी मनः स्थिति क्या होती है।
किसी लक्ष्य से हीं कुछ लिखते हैं। कोई आपके कार्य को अच्छा कहे न कहे, जब स्वयं को अच्छा लगता है तो, बिल्कुल संतुष्टि मिलती है।
- आप कविता और छंद की रचना प्रक्रिया विस्तार से जरूर बतायें।
जिससे हमारे पाठक भी आपसे कुछ सीख सकें।
मेरी नज़र में रचनाएँ भाव प्रधान और साधारण होनी चाहिए जिसे पढ़ने वाले समझने के लिए सिर नहीं फोड़े। बहुत ऐसे लोग हैं जिनके पास अच्छे-अच्छे विचार हैं पर व्यक्त नहीं कर पाते क्योंकि उन्हें छंदोबद करना नहीं आता। मेरी नज़र में उन्हें भी लिखने का अवसर मिलना चाहिए। क्योंकि हमें कहीं से तो आरम्भ करना है। पर छंदोबद रचनाओं का स्थान हिन्दी साहित्य में कुछ और ही है। मेरा यह मानना है कि जिसने लिखना आरम्भ किया तो एक दिन अवश्य हीं सुन्दर से सुन्दर रचनाएँ लिखेगा।
- आपने लगभग सभी विधाओं में अपना हाथ आज़माया है, फ़िर भी ऐसी कोई विधा जो आपकी मनपसंद हो, उसके बारे में बताइये।
मुझे गीत, दोहे अच्छे लगते है। अभी एक नयी विधा जबलपुर में “पूर्णिका” नाम से सामने आयी है। कुछ ग़ज़ल से मिलती जुलती है पर, नियम से कुछ मुक्त है। सो मुझे पूर्णिका भी पसंद है। इस विधा को बहुत प्यार से गाया भी जा सकता है। फिर मनहरण तथा रूप और जन घनाक्षरी भी मुझे पसन्द है।
- आप कोई गीत या नवगीत फ़िल्मी तर्ज़ पर लिखा हो, और आपकी दो प्रतिनिधि रचनाएं यहाँ भेजिए ?
जी बिलकुल…
०१-(तुझे सूरज कहूँ या चंदा)
मैं हूँ माता-पिता की आशा
पूरी इनकी करूँ अभिलाषा
मेरे प्राण बसे इनके तन
मैं हूँ इनकी परिभाषा..
मैं… ।
मन मन्दिर इनको बिठाके
मैं नित- नित इनको ध्याऊँ
वृंदावन जाऊँ क्यों काशी
चरणों में तीरथ पाऊँ
जो सुख है इनके संग में
नहीं सुख कहीं मिलता ऐसा
मुझे कर्ज़ चुकाना है इनका
नहीं बनना इनकी निराशा…
मैं हूँ.. ।
नहीं मुझ बिन इनका कोई
यहाँ इनका न कोई सहारा
ये जीवन मेरा इनका
हैं ये मेरा एक आधारा
तन- मन – धन मेरा इन्हें अर्पण
है ये मेरे प्यार का प्यासा
बनूँ दीप मैं पथ के इनका
बनूँ इनका मैं दिलासा..
मैं हूँ.. ।
०२-(चंदन सा बदन)
प्यारा जग से न्यारा तू वतन
मेरा देश मेरा तू मेरा चमन
न्यौछावर जीवन तेरी शरण
नमन नमन हे! जननी नमन।
तू जग को जगाता वो सूरज
तू चमके बनके चाँद गगन
जग बगिया का तू सूमन अनुपम
तारों में तू तारा तारा नयन
जिस धरा बसे शिव हरि विष्णू
श्रीराम कृष्ण ब्रह्मा बजरंग…
प्यारा जग से… ।
जहाँ बसती है गंगा यमुना
बन बहती अमृत की धारा
जिस मिट्टी की गंध गंध सुगंध
जहाँ हिमगिरि का है पहरा
जहाँ संस्कृति सभ्यता बसे तन मन
संस्कार बसे माथा चंदन…….
प्यारा जग से…. ।
8.. नये आगंतुक लेखकों के लिए आपकी कोई आगामी योजना है, वे भी आपसे सीख सकें, उसके बारे में बताएं ?
हम कहीं न कहीं से शुरू करते हैं। स्वाभाविक है कि कोई भी जन्म से सीखकर नहीं आता। मेरा निवेदन है कि आप भी थोड़ा सीख लें फिर अवश्य हीं अच्छा लिख सकेंगे। फिर एक विशेष बात यह भी है ऐसे बहुत लोग हैं जो हिन्दी की रोटी नहीं टोड़ते, और उनको अपनी भाषा से अथाह प्रेम है, कुछ लिखना चाहते हैं तो, ऐसे लोगों को क्यों रोकें। प्रोत्साहित करें। भारत के अलावा कम हीं ऐसे देश हैं, जहाँ हिन्दी रोटी की भाषा हो। इसके बावजूद उन देशों में हिन्दी साहित्य का बोल बाला है। वहाँ के रचनाकार कई ऐसे लोग हैं जो हिन्दी भाषा, या फिर साहित्य से कह लें, अथाह प्रेम करते हैं। अपने धर्म – संस्कृति को भी सदा साथ रखें।
9.. यदि आपने कोई हास्य रचना लिखी हो तो, हमारे सभी दर्शक ज़रूर लुत्फ़ उठाना चाहेंगे, सुनाइए न।
जी, क्षमा चाहूँगा इस क्षेत्र में अभी तक तो नहीं लिखा है पर, शायद अब आशा जागी है तो, नि:संदेह कुछ प्रयास अवश्य करूँगा।
10.. आपके मन पसंद कवि कौन- कौन रहे और उनकी कौन सी रचना ने आपको अत्यधिक प्रोत्साहित किया ?
मैंने विशेषकर कबीरदास, तुलसीदास, सूरदास आदि कवियों की प्राय: सभी भक्ति रचनाएँ पसंद की है।
जहाँ निसंदेह राम-कृष्ण मेरे प्रिय हैं।
- आधुनिक या प्राचीनतम युग के उन कवियों का नाम आप यहां से लेना चाहें जिन्हें हम सबको पढ़ना और सुनना चाहिए ?
मैथिलीशरण गुप्त जी, सुभद्रा कुमारी चौहान, माखनलाल चतुर्वेदी, जयशंकर प्रसाद और जैसे बताया भक्त शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी, कबीरदास जी, महादेवी वर्मा जी, हरिवंशराय बच्चन जी आदि।
12.. अक्सर हम यही कहते हैं की बेहतर लिखना है तो बेहतर किताबें पढ़ें, आप बताएँ वो कौन सी पाँच पुस्तकें हैं जो हर लेखक को ज़रूर खरीदकर अपनी अलमारी में रखना चाहिए और ज़रूर पढ़ना चाहिए ?
मुंशी प्रेमचन्द जी को पढ़ना नहीं भूलें, चाणक्य नीति आपके पास अवश्य होना चाहिए। रामचरित मानस के साथ श्रीमद्भागवत गीता, की पुस्तकें आपकी अलमारी में होना अनिवार्य है। ये तो विचारों की खान हैं।
13.. आज़ आप हमको निजी जीवन में आये संघर्ष के उन पलों के बारे में बताएँ, हम सब भी आपसे कुछ सीख सकें, प्रेरणा ले सकें।
सीखने के लिए वक्त और पैसा दोनों आवश्यक है। दोनों को ही पाना कठिन है, क्योंकि गरीब परिवार से होना आसान नहीं है।एक आता नहीं दूसरा रहता नहीं। सो यहाँ रात दिन एक करना पड़ता है। तब तक न संतुष्ट होवें जब तक लक्ष्य न सिद्ध हो जाए। गरीब के लिए बिना संघर्ष कुछ भी मुमकिन नहीं है। और आपको तो पता है लिखना एक साधना है जहाँ संतुष्टि के साथ आलोचनाएँ भी मिलती। यह कोई धन कमाने का ज़रिया तो है नहीं।
14.कृपया आप अपनी उपलब्धियों के बारे में थोड़ा बताइए?
मुझे अपने देश के पत्र पत्रिकाओं द्वारा जहाँ सम्मान प्राप्त हुए। वहाँ भारत के कई संस्थाओं द्वारा भी मुझे सम्मानित किया गया, जिनमें..
“बुलंदी साहित्यिक सेवा समिति” द्वारा मुझे “देवनागरी सम्मान” प्राप्त हुआ।कुछ सम्मानों में… लोक संस्कृति अलंकरण.,भक्तिश्री अलंकरण, हिन्दी श्री अलंकरण, हिन्दी सेवी अलंकरण, वर्तिका काव्यश्री अलंकरण, संस्कृतिश्री अलंकरण, देशभक्ति गौरव सम्मान, मंथनश्री अलंकरण, काव्य कला वारिधि अलंकरण, मंथनश्री सृजन मंगल अलंकरण, काव्य प्रकाश अलंकरण (जो याद है) आदि आदि शामिल हैं।
काफ़ी साझा संकलनों में मेरी रचनाएँ छपी है। जिनके मुख्य रूप से (कोरोना, सरस्वती वंदना, दोहा, देश भक्ति गान, मंथनश्री काव्य साझा संकलन, आदि विशेषांक है। साथ ही कई विदेशी पत्र – पत्रिकाओं में भी मेरी रचनाएँ छपती रहती है। बस सिलसिला जारी है।
अन्त में मुझे लगता है अवसर से लाभ उठाकर मैं(मंथनश्री, जागरण साहित्य समिति, वर्तिका संस्था, आभा साहित्य संघ तथा साहित्य सुधा मंच के पदाधिकारियों को उनके सहयोग केलिए धन्यवाद कहूँ। जिनकी कृपा से मैं अपनी हिन्दी भाषा की सेवा भली-भांति कर पा रहा हूँ।
15-आपकी नज़र में हिन्दी का भविष्य कैसा है?
वर्तमान में मेरे देश में” हिन्दी सेवा संस्थान” नाम की एक संस्था है जिसका मैं संचालक हूँ। दो सौ से ज्यादा बच्चे वहाँ हिन्दी की पढ़ाई करने आते हैं।
हम उनको यही सिखाते है कि, आप हैल्लो, हाई, थैंक्यू छोड़िये। नमस्ते, धन्यवाद बोलिए। यही छोटी सी बीमारी एक दिन हमारी हिन्दी को ले डुबेगी। हम देखते रह जायेंगे। मैं एक बात कहूँ शायद आपको अच्छा भी न लगे, ये जो हिन्दी के साथ- साथ अंग्रेजी के शब्द झाड़ते हैं, ज़रा उनकी अंग्रेजी सुनिए। अरे भाई आपकी हिन्दी लाखों में एक है। गैर भाषी हिन्दी सीख रहे हैं और आप… ।इसपर थोड़ा ध्यान देना है हमें।
- नये साहित्यकारों को क्या सीख या संदेश देना चाहेंगे ?
मुंशी प्रेमचन्द की तरह बनना, या फिर किसी बड़े साहित्यकार की तुलना में आना तो शायद मुश्किल हो। हाँ कुछ अच्छा लिखने के लिए बड़ों का साथ मिल जाए तो फिर.. समझो बन गयी बात।और बड़े भी अगर छोटों को एक नज़र देखले तो नि:संदेह प्रगति निश्चित है।
धन्यवाद।
(गोवर्धन सिंह फ़ौदार “सच्चिदानन्द”)
पता :मोरिश्यस ।