एकता गुप्ता ‘काव्या’
बात उन दिनों की है जब हम सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालय में कक्षा दशम् की छात्रा थे हम अपने पापा के साथ पापा की मौसी (हमारी दादी मॉसी) के घर उनकी बेटी की शादी में गए थे (जिनके लिए पैसा सबकुछ था) और हमारे यहां जो दादा दूध लाते थे उनकी तबियत बहुत खराब थी वो दूध वाले दादा जी भी वहीं हैलट अस्पताल में भर्ती थे
हमें वैसे भी वहां अच्छा नहीं लग रहा था क्योंकि कि हम दूध वाले दादा के बारे में जानकर बस उन दादा जी को देखना चाहते थे
यहां शादी के पहले मेहंदी की रस्म चल रही थी सभी रिशतेदार अपने अपने गिफ्ट और भेंट स्वरूप राशि का गुणगान कर रहें थे ,
मैनें पापा को बताया कौन क्या क्या लाया है ? सभी मंहगे मंहगे गिफ्ट लाएं हैं
हमें शादी वाले दिन सुबह मार्केट जाना था और उधर ही दूध वाले दादा जी से मिलने भी ,
वहां दादा जी इलाज तो हो रहा था लेकिन अच्छे से नहीं
हमने रास्ते में फल लिए और पहुंच गए मिलने दूध वाले दादा जी से
दादा जी की नजर जैसे ही हम पर पड़ी उनकी आंखों से आंसू बहने लगे ,
अचानक मेरे मन में ख्याल आया कि पापा दादी मॉसी तो बहुत पैसे वाले हैं वहां चाहे कितना भी अच्छा और मंहगा उपहार ले जाएंगेे उन्हें तो कम ही लगेगा तो क्यूं न हम अपने कुछ पैसों से दूध वाले दादा जी की मदद कर दें ताकि दादा जी का इलाज अच्छे से हो जाए
वहां खड़े डाक्टर अंकल ने हमारी बातें सुन ली और हमसे दूध वाले दादा जी के साथ रिश्ता पूछा तो हमने कहा ये हमारे दूध वाले दादा जी हैं और आप डा० अंकल जी हमारे दादा जी को जल्दी अच्छा कर दो
और जब दादा जी एक सप्ताह बाद स्वस्थ होकर घर लौटे उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रखकर ढेर सारा आशीर्वाद दिया और कहा लाडो तुम हमेशा ऐसी ही रहना।
हम अक्सर शादियों में मंहगे गिफ्ट ले जाते हैं बेशक ले जाइए लेकिन किसी जरुरतमंद से मिलने अस्पताल जाएं तो भी हम अपनी ओर से आर्थिक मदद अवश्य करें ताकि कोई भी गरीब कर्ज में डूबने से बच जाए और उन्हें भी अपनेपन का एहसास होता रहे।
—✍️एकता गुप्ता ‘काव्या’
उन्नाव उत्तर प्रदेश