द्वापर युग में महाभारत की, अद्भुत ,आश्चर्यजनक ऐसी पृथक, कहानी ।
जो आज तक कहीं जाती है ,महाभारत की अनोखी सर्व विदित जुबानी।
रचा गया दुर्योधन ओर मामा शकुनि के द्वारा,ऐसा कुनीति, पूर्ण छल प्रपंच।
मामा शकुनि ने ऐसे दाव पेच लगाएं ,और किये इतने कुकृत्य, छलछंद।
पांडव सत्य ,मृदु भाषी, विनम्र ,निस्वार्थ भाव से सत्य निश्चित कर्म निष्ठावान।
प्रत्येक बात से थे सहमत ,मानते थे कौरवोंकी बात न्याय प्रिय, करुणा निदान।
नहीं चल पाई, कौरवों और दुर्योधन शकुनि मामाकी तो बिछाया गया,भयानक जाल।
कुनीतियां ,कुकृत्य ,षड्यंत्र कारी, दुष्कर्म अनीतिपूर्ण मामा शकुनि की चाल।
नहीं चल पाई दुर्योधन की ,तो लिया आश्रय शतरंज जुआ की,अधर्मी चाल।
जुए में छल से सब कुछ जीत लिया, कर दिया पांडवों को विदीर्ण बेहाल।
बाकी बचा ना कुछ ,उनके पास ,एक मात्र थी शेष उनकी द्रौपदी रानी।
अंत में द्यूतक्रीडा में लगादाव पर, शेष बचीअपनी प्रिय द्रौपदी, महारानी।
दुशासन,द्रोपदी को, भरी सभा में लेआया खींच कर खुले केश।
चीखती,चिल्लाती, चीत्कार करती, स्वरक्षा हेतु, दृष्टिपात भीष्म कीओर क्रोधावेश।
रो रही द्रौपदी बिचारी, सुनो बनवारी लाज मेरी जाती है।
दुष्ट दुशासन चीर खींच रहा, सभा विच करना चाहत उघारी।
इतनी देर सुनी करुणा ने ,तुरंत गरुड़ की सवारी, बढ़ा दी साड़ी।
बचा ली लाज श्री कृष्णा बनवारी, चरण कमल पर
जाऊं बलिहारी।
डॉ मीरा कनौजिया ,काव्यांशी,
केंद्रीय विद्यालय हिंदी शिक्षिका