प्राची अग्रवाल
बात करीब 25 साल पुरानी है। हमारे चाचा का विवाह हुआ था, बुलंदशहर जिले के बीवी नगर क्षेत्र से। उस समय हम छोटे बच्चे हुआ करते थे। हमारे क्षेत्र में ससुराल में होली खेलने की परंपरा है विशेषकर विवाह के प्रथम वर्ष में। चाची अपने मायके गई हुई थी अपनी पहली होली मनाने। होली के दिन मैं और मेरा भाई भी चाचा के ससुराल बीवी नगर गए। यहां हमने एक नई तरीके की होली देखी जिसका नाम था लोटा मार होली। ब्रज की लठमार होली और गोकुल की छड़ी मार होली के विषय में तो आप सभी ने सुना होगा किंतु बीवी नगर की लोटा मार होली सदियों पुरानी प्रथा को समेटे हुए है।
यहां की महिलाएं अपने-अपने घरों से लोटे में रंग भर कर लाती हैं। टोलियो में चलती हैं और पुरुषों के ऊपर पहले लोटे से रंग डालती हैं और फिर लोटे से कमर पर थाप मारती हैं। किंतु उनकी यह थाप प्रेम भरी होती है। यह महिलाएं पहले उन घरों में जाती हैं जहां पूरे साल में कोई गमी हुई होती है। हम तो उस समय बच्चे थे लेकिन हमारे चाचा पर ससुराल के लोटे की थाप बहुत पड़ी लेकिन थी वह प्रेम पगी। ऐसी अद्भुत परंपरा मैंने पहली बार देखी। ढोलक की थाप पर गीत भी गाए जा रहे थे। कहीं-कहीं तो ससुर को बुलाकर समधियाने में कुआं पूजन भी कराया जा रहा था। साथ में पूरा का पूरा झुंड साथ चल रहा था। बच्चे नाचते गाते आगे बढ़ रहे थे। जो कि मनोरंजन का भरपूर प्रयोग था।।
यह बात तो बहुत पुरानी है लेकिन आज भी बुलंदशहर के बीवी नगर में लोटा मार होली अपनी परंपरा को समेटे हुए हैं। उसके बाद मैंने बहुत सी होली देखी,खेली लेकिन बीवी नगर की लोटा मार होली का सकारात्मक चित्र मेरे मन मस्तिष्क पर अंकित हो गया।
प्राची अग्रवाल
खुर्जा उत्तर प्रदेश