नागेंद्र कुमार पांडे उर्फ अंबर मित्र जीत
“नैमिषारण्य द्वीप की राजधानी ओदंतपुरी में बहुत ही धूमधाम के साथ महामृत्युंजय यज्ञ संपन्न हुआ, और कलश की झांकियां निकली।”
नैमिषारण्य द्वीप की राजधानी ओदंतपुरी के चपे- चपे में आचार्य बाबा शांडिल्य ऋषि के द्वारा कराए जाने वाले महामृत्युंजय जप का प्रभाव दिखने लगा। हर जगह शांति और सुंदर वातावरण दिख रहा था। हर जगह वैदिक सांस्कृतिक झलकियां दिख रही थी। राजा वीरभद्र के राज्य नैमिषारण्य द्वीप की राजधानी ओदंतपुरी के राजमहल से लेकर। उसके चारों दिशाओं में। कई तरह के अनुष्ठान चल रहे थे। हर जगह ब्राम्हण बैठे हुए थे। हर जगह अनेकों तरह की वेदियां बनाई गई थी। और उन वेदियों को सुसज्जित करने के लिए, हर बेदी के आगे अथवा बगल में एक हवन कुंड बनाए गए थे। हवन कुंड में सभी ब्राम्हण एक ही स्वर में एक ही साथ चौसठ हजार करोड़ “ओम त्रयंबकम यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम ” इस वैदिक मंत्र को उपचारित कर रहे थे । हर माह इस मंत्र को चौसठ हजार करोड़ बार एक विधि से उच्चारण करना था । और ऐसा ही किया जा रहा था। राजा के राजमहल के चारों तरफ तीन सौ हवन कुंड की वेदियां बनाई गई थी। इन वैदिक हवन की वेदियां पर तीन सौ। उसी राज्य के ब्राह्मण बैठे थे। तथा राजा के राजमहल के चारों दिशाओं में, एक एक ब्राम्हण। जोकि बाबा शांडिल्य ऋषि के साथ आए थे। वह भी अलग से बैठकर । इन्हीं मंत्रों का उच्चारण कर रहे थे। अब लग रहा था कि राजा वीरभद्र के पुत्र चंद्रादित्य की मृत्यु टल जाएगी, अर्थात राजा वीरभद्र का पुत्र राजकुमार चंद्रादित्य नहीं मरेगा । और बहुत ही धूमधाम के साथ। हर दिन इसी तरह यज्ञ की आहुति पूर्ण करती हुई।
तकरीबन पांच माह गुजर गए। तभी, चैत्र मास के कृष्ण पक्ष के एकम तिथि आ गई। आज से बाबा इस यज्ञ को संपन्न करने के साथ, ही आज से एक दूसरा अनुष्ठान की शुरुआत की गई। तभी बाबा शांडिल्य ऋषि राजा वीरभद्र को बोले कि राजन ! आज! यज्ञ का पांच माह पूर्ण हो चुका है । आज तुम्हारे राज्य की सारी महिलाएं और युक्तियां गंगा से जल लाकर। भगवान महामृत्युंजय का जलाभिषेक करेंगे । और आज से मैं दूसरे अनुष्ठान की शुरुआत करूंगा। राजा को जिन बातों को कहा गया। राजा वीरभद्र ने पूरी सुरक्षा और प्रसन्नता से स्वीकार किया। राजा वीरभद्र अपने हाथी, घोड़ों के साथ सुसज्जित होकर। सबसे आगे उस कलश यात्रा की झांकी को लेकर। गंगा नदी से पांच हजार सनातनी नारियों के साथ । कलश यात्रा निकाला। उसमें उसकी दोनों रानियां, सभी दासिया और उस नगर के स्त्रियां के साथ तरुण युवतियां। सभी ने इस कलश यात्रा में शामिल होकर। इस कलश यात्रा की झांकी की हिस्सा बनी। यह कलश यात्रा झांकी बहुत ही दूर से बहुत ही खूबसूरत दिखता है। इसमें ऊंट ,पहाड़ी घोड़े, युद्ध में इस्तेमाल किए जाने वाले घोड़े, हाथी, अनेकों तरह के जानवर भी प्रयोग किए गए । राजा वीरभद्र गंगाजल को लेकर उन पांच हजार सनातनी महिलाओं के साथ, पूरे राज्य का भी भ्रमण किया। उसके बाद राजमहल की परिक्रमा हुई। तथा उसके बाद भगवान महामृत्युंजय भोलेनाथ को जलाभिषेक किया गया। और आखिरकार सारे गंगाजल को लेकर सभी वेदियों के आसपास, उस गंगाजल को छिंटा गया। उसके बाद राजा वीरभद्र यज्ञ की वेदी में अपनी पत्नियों के साथ बैठकर। बाबा शांडिल्य ऋषि के साथ यज्ञ की वेदी में चंदन की लकड़ी की आहुति दे ही रहे थे। तभी बाबा शांडिल्य ऋषि ने उस महामृत्युंजय के सभी विशेषताओं को बताते हुए । राजा को आज्ञा दी। राजन ! अब अपने पुत्र का नाम लेकर एक सौ आठ बार इस यज्ञ की हवन कुंड में पूरे वैदिक विधि से महामृत्युंजय का जाप करो। उसके बाद राजा वीरभद्र ने स्वयं से ही उस यज्ञ के हवन कुंड में महामृत्युंजय का एक सौ आठ बार जाप किया। तथा राजा वीरभद्र और उसकी दोनों पत्नियों(तारा और उर्मिला) ने भी हर तरह से बाबा के आज्ञा का पालन किया। बाबा शांडिल्य ऋषि, राजा वीरभद्र को समझने के बाद। बाबा शांडिल्य ने राजा वीरभद्र को यह आज्ञा दिया।” हे राजन! जाओ । तुम अपने पुत्र को सभी आभूषणों के साथ पीले वस्त्र में सुसज्जित कर, कर इस यज्ञ की वेदी में लाकर । राजकुमार चंद्रादित्य को भी यज्ञ की हवन वेदी हवन करवाओ और घी की आहुतियां दिलवाओ।”
उसके बाद राजा अति शीघ्रता के साथ राजमहल की ओर अपनी पत्नियों के साथ गया। और वहां से अपने पुत्र राजकुमार चंद्रादित्य को बहुत ही खूबसूरत आभूषणों के साथ पीले वस्त्र में चांदी के खड़ाऊ भी पहना कर वहां लाया। उसके बाद अब इस यज्ञ के दूसरे अनुष्ठान शुरू किए गए। बाबा शांडिल्य ऋषि ने राजा वीरभद्र के पुत्र राजकुमार चंद्रादित्य को पूर्व की ओर मुख करके यज्ञ के हवन कुंड की विधि के पीछे बिठाकर। एक सौ आठ वार पहले गाय के घी के द्वारा आहुति दिलवाई गई। उसके बाद खीर की हवीस के द्वारा फिर से आहुति दिया गया। तथा राजा वीरभद्र के पुत्र राजकुमार चंद्रादित्य के द्वारा चंदन की लकड़ी । तथा शमी की लकड़ी आम की लकड़ी। हर तरह की नवाग्रह की लकड़ियों को इस यज्ञ के हवन कुंड में हवन स्वरूप राजा वीरभद्र के पुत्र चंद्रादित्य के द्वारा डलवाया गया। बाबा शांडिल्य ली ऋषि ने राजा वीरभद्र के पुत्र राजकुमार चंद्रादित्य को “ओम त्र्यंबकम यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम” इस मंत्र का उच्चारण मन ही मन चौसठ हजार बार करने के लिए कहा। फिर आखिर में शांति मंत्र का पाठ करवा कर संकल्प मंत्र बोले ।
“ओम ! विष्णु! विष्णु नमः:पुराणे पुरुषोत्तमाए अद्य ब्राह्मण द्वितीय श्री श्वेत वाराह कल्पेश व्यवसुत मन्वन्तरे आष्टाविसप्तमे कलयुगे कलीप्रथम चरणे जंबूद्वीप भरतखंड आर्यावर्त नैमिषारण्य उदंतपुरी नगरे राजकुमार चंद्रादित्य अहम अस्मि।”
इस मंत्र के द्वारा संकल्प करवाई गई। फिर आचार्य बाबा शांडिल्य ऋषि ने उसे इस मंत्र के उच्चारण करने के बाद संकल्पित करा कर। उस यज्ञ को संपन्न कर देते हैं। तथा उसके बाद राजकुमार चंद्रादित्य को उस यज्ञ मंडप से राजमहल जाने का आदेश देते हैं।
इसके बाद बाबा आचार्य शांडिल्य ऋषि अपने यज्ञ की वेदी पर बैठकर। सभी ब्राह्मणों को आदेश देते हैं कि अंत में एक सौ आठ बार इस मंत्र को पुनः जाप करें । तथा इसके बाद बाबा शांडिल्य ऋषि राजा वीरभद्र को बुलाकर। एक सुझाव देते हुए कहते हैं कि राजन ! आज से लगातार अमावस की रात तक। जहां-जहां यज्ञ की वेदी बनाई गई ।और हवन कुंड बनाए गए। वहां इसी तरह से प्रतिदिन हवन भी होंगे। और दीपोत्सव भी होगा। परंतु आने वाले अमावस की रात को चौसठ हजार करोड़ दीपक जलाई जानी चाहिए। तुम्हारे राज्य में वह कोई भी जगह ऐसा ना हो । जहां उस अमावस की रात की काली छाया दिखाई दे। अगर ऐसा होता है तो उसी रास्ते कालनेमि तुम्हारे राज में प्रवेश करते हुए। तुम्हारे राजमहल में भी प्रवेश कर ।तुम्हारे पुत्र का प्राण हरण कर लेगा। इसलिए आने वाले अमावस की रात को चौसठ हजार करोड़ दीपक जलनी चाहिए । वही एक स्वर्ण दीपक बहुत बड़े आकार का बनवाओ। स्वर्ण दीपक को पूरे तीन सौ पैसठ दिन चलना है। उस अमावस की रात को मैं उसी स्वर्ण दीपक के पास रहूंगा ।इस दीपक का नाम अखंड ज्योति है। राजा बाबा शांडिल्य ऋषि की आज्ञा अनुसार। पूरे राज्य में इस बात की सूचना नगाड़े बजाकर किया गया है । नगाड़ा बजाने वालों ने घूम घूम कर। पूरे राज्य में यह घोषणा करता है कि सुनो !सुनो! सुनो! नैमिषारण्य द्वीप के राजा का यह संदेश है कि पूरे राज्य में चौसठ हजार करोड़ दीपक जलाए जाएंगे। इसलिए जिनको पैसा नहीं। वह राजा से मांग कर दीपक खरीदें। जिनको दीपक नहीं। वह कुम्हार से मांग कर दीपक ले जाए। अर्थात जिसको धन नहीं। वह राजा से आर्थिक मदद मांगे । जिससे घी नहीं वह ग्वाला से घी लेकर दीपोत्सव करें। यह घोषणा दीपोत्सव के लिए है। किसी भी तरह आने वाली अमावस की रात को कहीं भी अमावस की काली परछाई नहीं दिखनी चाहिए । राजा वीरभद्र ने कुम्हार को यह आज्ञा देया कि आप सभी कुम्हार समुदाय मिट्टी के दीपक बनाए । वही लोहार समुदाय लोहे के। तथा सुनार स्वर्ण और पीतल तथा दूसरे धातु के जितने भी इस राज्य में रहने वाले शिल्पकार लोग हैं। वह सभी दीपक बनाने का कार्य करें। आने वाले अमावस की रात से पहले हर व्यक्ति के घर ,आंगन और उसके आसपास दीपक जलनी चाहिए। किसी के पास अगर पैसे या धन की कमी है। तब हम से मांगे। राज्य की तरफ से उसे ये सब दिया जाएगा ।दीपक रूपी सहायता की जाएगी । और इतना ही नहीं। घी की जरूरत हो तो ग्वाले या पशुपालक अथवा राज दरबार में आकर इस चीज यानी घी को ले जाए। इस तरह से घोषणा करने के बाद नैमिषारण्य द्वीप में तकरीबन तीन अरब से अधिक दीपक बनाई गई । लगभग उस राज में रहने वाले सभी लोगों की दीपक की पूर्ति कर दी गई । साथ ही साथ घी की पूर्ति की गई। हर तरह से सारे साजों सामान। बाबा शांडिल्य ऋषि के अनुसार उपस्थित की गई। और एक अखंड ज्योति बनाया गया। जिसके बहुत बड़ी बत्ती भी बनाई गई। इस अखंड ज्योति को पूरे तीन सौ पैसठ दिन मतलब पूरे एक साल चलना है। इस अमावस की रात को बाबा शांडिल्य ऋषि उस दीपक के पास बैठकर।” ओम त्र्यंबकम यजामहे “मंत्र को महामृत्युंजय जप के रूप में राजकुमार चंद्रादित्य कि जीवन की रक्षा के लिए उच्चारण करेंगे।
बाबा शांडिल्य ऋषि पुनः नैमिषारण्य द्वीप के राजा वीरभद्र को बुलाकर। यह भी चेतावनी दी। अगर उस रात कहीं भी अंधकार प्रकट हुआ तो उसका जिम्मेवार तुम होगा। और तुम्हारे पुत्र को कोई नहीं बचा पाएगा ।वहीं यह जो भी दीपक जलाए गए। यह रात भर निरंतर निरंतर जलनी चाहिए और यह अखंड ज्योति को कोई भी ना बुझाए। यह अखंड ज्योति की रक्षा मैं स्वयं ही करूंगा। रात उस रात कुछ भी हो सकता है। कोई भी दूसरी दैवीय शक्ति का आगमन हो सकता है। क्योंकि वह अमावस की रात तुम्हारे पुत्र के लिए सबसे खतरनाक रात साबित होगा। राजा वीरभद्र अपने मस्तक हिला कर। हां! कहा और तब राजा वीरभद्र ने कहा मैं अपनी प्राण की तरह इन सभी दीपक की उस रात रक्षा करूंगा।
क्रमशः (आगे क्या हुआ…? यह जानने के लिए पढ़ें। 13 वां अध्याय ।इसी तरह हम से जुड़े रहे।)
लेखक :- नागेंद्र कुमार पांडे उर्फ अम्बर मित्रजीत
मिलते हैं ।अगले अध्याय में…….. शुक्रिया ।