नागेंद्र कुमार पांडे उर्फ अंबर मित्र जीत
“राजा मित्र जीत का कुसुमपुर के मुख्य आचार्य बाबा शांडिल्य ऋषि से देखे गए, सपने के विषय में बातचीत और अशुभ सपना का समाधान ।”
तब बाबा शांडिल्य ऋषि पुनः राजा की ओर देखते हुए बोलते हैं।”राजन कल रात आपने रात्रि के किस शहर में सपने देखें।”
तब राजा बोलता है। “गुरुदेव कल सुबह से ही मेरी चिंता बहुत अधिक बढ़ी हुई थी। तभी मैंने सोचते- सोचते ही विश्राम कक्ष में बैठा रहा। अचानक मेरे मंत्री पंडित दीनबंधु शास्त्री मुझसे मिलने आए ।और मेरे साथ सहानुभूति दिखाते हुए। राज दरबार में लौट गए। उसके बाद मैंने वही विश्राम कक्ष में ही सिंहासन पर बैठे हुए ही सो गया । तभी लगभग रात्रि के दूसरे पर में मैंने देखा। मैं एक शिकार की तलाश में अपने पूरे सैनिक और शुभचिंतकों के साथ एक घने जंगल में गया हूं । जहां एक हिरन का पीछा बहुत दूर से करता आया हूं। उस हिरण का शिकार करने के लिए अनेकों तीर चलाने के बाद। जब मैं सफल नहीं हो सका। तब उसका पीछा करता हुआ। घने जंगलों और पथरीले दुर्गम क्षेत्रों को पार करते हुए । एक पहाड़ी क्षेत्र में प्रवेश किया । उसके बाद एक किले के बगीचा में पहुंचा । जहां बहुत से ऋषि मुनि थे। और बहुत ही रमणीय जगह था। मैं अपने जीवन में उस तरह का जगह आज तक नहीं देखा था। जब वहां पहुंचा तो कुछ देर के बाद वह हिरन मेरे नजरों से ओझल हो गई। और पुनः दिखाई दी। उसी दौरान मैं अपने तरकस से आखरी तीर धनुष पर चढ़ा कर। उसे मारने के लिए चलाया । उस समय मेरी आंखों के सामने बहुत से केले के पत्ते दिख रहे थे। और हिरण के आसपास भी बहुतायत मात्रा में केले के पत्ते थे ।इस वजह से मुझे वह हिरण साफ दिखाई नहीं दे रहा था। मैंने अपने पीछे रखे हुए भाला(शुल) को भी बहुत ही तीव्रता के साथ अपनी पूरी शक्ति से, उस हिरण पर फेंका। आगे बहुत सी झाड़ियां और केले के पत्ते थे। किस वजह से मैं उस हिरन को नहीं देख सका। जब मैं अपने शिकार को पकड़ने के लिए पहुंचा । तब वहां चार तड़पती हुई गायों को पाया। मेरे एक भाला और एक ही तीर से चार तड़पती हुई गायों की मौत की मौत हो गई। वही कुछ देर बाद। वहां बहुत बड़ी जनसंख्या के साथ ब्राह्मणों का आगमन हुआ। उसमें से एक सफेद वस्त्र वाला ब्राह्मण। मुझे श्रापित किए और उसके बाद मेरे उपर पर जल छिटे। इतना ही नहीं वहां जितने भी ब्राम्हण और ब्राह्मणी तथा ऋषि एवं ऋषिकाएं थी। सब ने मुझे श्रापित किया और आखिरकार मेरी नींद अचानक से टूट गई । और वह सपना भी खत्म हो गया।”
तब बाबा शांडिल्य ऋषि अपनी मित्रों को बंद करके। कुछ देर बाद राजा और मंत्री की तरफ देखते हुए बोले।” राजन..! इसका तात्पर्य दो प्रकार की बातों सिद्ध करता है। क्योंकि आपने रात्रि के दूसरे पहर के बाद। इस सपने को देखा है। अतः, इसका निष्कर्ष यह हुआ कि बहुत जल्दी, आप एक मुसीबत में घिरने वाले हैं। परंतु ,नींद टूट गई। इससे सिद्ध होता है आपको उन ब्राह्मणों द्वारा आपको श्राप नहीं दिया गया ।अतः, आप उस मुसीबत से जल्द ही मुक्त हो जाएंगे। परंतु आपने चार गौ की हत्या भी की है। और हिंदू सनातन धर्म में गौ हत्या एक बहुत बड़ी हत्या मानी जाती है। इसलिए, मेरी मानो तो आप चार ब्राम्हण कुंवारियों का चार ब्राम्हण कुमारों के साथ विवाह करा दे। तब इस सपने रूपी गौ हत्या से आपको मुक्ति मिल जाएगी। वही इन चार ब्राम्हण कन्याओं का कन्यादान। आप स्वयं ही करेंगे। उन चारों के शादी के मंडप में पिता धर्म भी आप को ही निभाना पड़ेगा । इसके बाद इस अशुभ सपने का समाधान यही है। इसलिए जैसा मैं कह रहा हूं वैसा ही आपको करना चाहिए।”
तब राजा मित्र जीत फिर से हाथों को जोड़ते हुए बाबा शांडिल्य ऋषि के आगे नतमस्तक होकर । मस्तक को नीचे की तरफ झुकाते हुए। मुंह से बोले।” जी गुरुदेव..! मैं वैसा ही करूंगा। आचार्य..!”
बाबा शांडिल्य ऋषि पुनः, राजा से पूछे। राजन..! यह तो आपके पहले सपना था। आपने दूसरा सपना कब और क्या देखें..? वह भी विस्तार से कहिए।”
राजा मित्र जीत पुनः बाबा शांडिल्य ऋषि की ओर देखते हुए बोला।” आचार्य..! जब मेरा पहला सपना टूटा। तब मैं बहुत डर गया। उसके बाद मैं विश्राम कक्ष के उस सिंहासन पर से उठ कर अपनी पहली पत्नी रंभा के शयनकक्ष की तरफ चला गया। वहां जाकर पलंग पर सो गया। अब यह तीसरी पहर की शुरुआत थी। वहां जाने के बाद मैं कुछ देर व्याकुल तथा चिंतित रहा। सपने के बातों को सोचता रहा। परंतु, जल्द ही मुझे पुनः नींद आ गई। जब नींद आई तो मैंने दूसरे सपने के रूप में देखा कि मेरे राजमहल के प्रांगण में बहुत से आचार्य आए हुए हैं। मैं अपनी तीनों पत्नियों के साथ पीले रंग के कपड़ों में यज्ञ की वेदी पर बैठकर । वैदिक मंत्रों का उच्चारण सुन रहा हूं। और यज्ञ में आहुति दे रहा हूं। तभी एक ब्राह्मण मेरे मस्तक पर अपने हाथ रख कर मुझे आशीर्वाद दे रहे हैं। वह कुछ बोलने ही वाले थे कि मेरी पहली पत्नी रंभा मुझे नींद से जगा दी।अब सुबह भी हो गया था।”
तभी बाबा शांडिल्य ऋषि अपनी दोनों नेत्रों को बंद कर कुछ। देर के लिए शांत बैठे रहे। फिर अपने नेत्रों को खोलते हुए राजा मित्र जीत की ओर देखते हुए बोले ।”राजन..! तुम पिछले जन्म में भी एक चक्रवर्ती राजा था। तुम पूरी दुनिया पर शासन करना चाहता था। परंतु इस कार्य में बहुत दूर तक सफल हो चुका था। परंतु, बहुत दूर तक सफल होना बाकी था। तुम्हारी आकांक्षाएं, इच्छाएं शेष रह गई थी। और इन इच्छाओं के पूर्ण हुए ही तुम्हारी मौत हो गई। इस कारण तुम पूरी दुनिया पर अपना आधिपत्य कायम नहीं कर सका। इसलिए यह सपना उसी के प्रतिफल था। मेरी मानो तो तुम अश्वमेध यज्ञ करो और और राज्य विस्तार के लिए अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा छोड़ो ।”
राजा मित्र जीत फिर से अपने सर को बाबा शांडिल्य ऋषि की ओर दो बार झुकाते हुए बोले ।”जी आचार्य..! मैं ऐसा ही करूंगा।”
फिर बाबा शांडिल्य ऋषि बोले। “परंतु ,राजन..! एक बात और अगर आप छ: माह के पूर्व अगर अश्वमेध यज्ञ की सारी तैयारियां संपन्न कर लेते हैं। तब उस अश्वमेध यज्ञ में मैं स्वयं शामिल रहुंगा और उसका संचालन मैं स्वयं करुंगा। अन्यथा, मेरे शिष्य गोपीनाथ और लोकनाथ जाएंगे ।और तुम्हारे उस यज्ञ को सफल बनाएंगे।”
बाबा शांडिल्य ऋषि पुनः, राजा की ओर देखते हुए बोले। “राजन ! और कोई चिंता है क्या….?”
तभी राजा मित्र जीत बाबा शांडिल्य ऋषि की ओर झुक कर कुछ बोलने ही वाले थे।
तभी, मंत्री पंडित दीनबंधु शास्त्री राजा से पहले बोल पड़े। “गुरुदेव..! यह राजा बहुत ही न्याय प्रिय कुशल और सुप्रसिद्ध हैं। इनके राज्य के साथ, इनके यहां किसी भी चीज की कोई कमी नहीं है। इनके राज के सभी प्रजा खुश हैं। सुख- समृद्धि , इनके राज्य में धन्य- धान की वृद्धि हो रही है। हर कोई यहां तक की जीव जंतु सभी प्रसन्न हैं। परंतु राजा मित्र जीत नि:संतान और संतान से हीन हैं।”
मंत्री पंडित दीनबंधु शास्त्री पुन: अपने दोनों हाथों को जोड़कर बोलते हैं।” हे गुरुदेव..! मैं इनके यहां मंत्री पद पर कई सालों से रहा हूं। हर मंत्री का यही कार्य होता है कि अपने राज्य के प्रजा और अपने राजा के लिए दिन-रात सोचे मेहनत करें । और उसके उन्नति का हर मार्ग प्रस्त करें। मैं भी चाहता हूं कि इस अभागे राजा मित्र जीत का पुत्र प्राप्ति का कोई उपाय बताएं। पुत्र प्राप्ति के लिए कोई यज्ञ करें। जैसे भी हो पुत्र प्राप्ति के लिए इनका समाधान करें।”
फिर मंत्री पंडित दीनबधु शास्त्री के बोलने के बाद। राजा मित्र जीत बोलता है।” जी गुरुदेव..! मैं ऐसा ही चाहता हूं। मैं यह चाहता हूं। मुझे एक पुत्र हो। मैं कई दिनों से इस परेशानी से बाहर नहीं निकल पा रहा हूं । मैं हर समय यही सोचता रहता हूं। मेरे बाद मेरे राज्य का क्या होगा..? कभी-कभी तो मुझे ऐसा भी लगता है कि मुझे अपनी तीनों पत्नियों के साथ सन्यास धारण कर लेना चाहिए।”
तभी बाबा शांडिल्य ऋषि राजा मित्र जीत की बातों को सुनकर मुस्कुराते हुए, बोलते हैं। “कोई बात नहीं राजन..! “जल्द ही आपकी समस्या का भी समाधान होगा। आप निश्चिंत रहें ।वह समय भी अति शीघ्र आने वाला है। जब आपको भी एक पुत्र के लालन-पालन का अवसर प्राप्त होगा।”
बाबा शांडिल्य ऋषि पुनः राजा मित्र जीत को बताते हैं।” पुत्र प्राप्ति के लिए राजन..! आपको माता गंगा की आराधना करनी चाहिए। माता गंगा की कृपा से बहुत ही जल्द आपको एक पुत्र मिलने वाला है। यह पुत्र आपको माता गंगे की कृपा से ही प्राप्त होगा। माता गंगा का पुत्र होने की वजह से गंगापुत्र देवव्रत, अर्थात भीष्म की तरह ही प्रतापी होगा। उसमें दिव्य शक्ति का भी प्रभाव रहेगा।”
राजा मित्र जीत इन बातों को सुनकर बहुत ही प्रसन्न होता है। और अंदर ही अंदर बहुत ज्यादा प्रफुल्लित होने लगता है।
तभी बाबा शांडिल्य ऋषि पुनः राजा मित्र जीत की तरफ देखते हुए बोलते हैं।” राजन..! कोई और कष्ट या परेशानी..?”
राजा मित्र जीत हाथ जोड़कर प्रसन्न होकर। मुस्कुराते हुए बोलता है।”आपका आशीर्वाद मुझ पर हमेशा बनी रहे।”
राजा मित्र जीत बोलता है।” बाबा बस मैं इतना ही चाहता हूं कि इसी तरह आपकी कृपा मुझ पर बनी रहे।”
बाबा शांडिल्य ऋषि मुस्कुराते हुए । राजा मित्र जीत को “तथास्तु” कहते हैं। उसके बाद राजा मित्र जीत अपने दोनों सहयोगियों के साथ आश्रम से निकलने की तैयारी करता है। तीनों एक-एक करके से बाबा शांडिल्य ऋषि के चरण स्पर्श करते हैं। फिर, पुनः उस आश्रम से बाहर निकलते हैं।
यहां सभी सैनिक इन तीनों की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं। तभी सेनापति अपने सैनिकों को आगे चलने की ओर इशारा करता है। फिर मंत्री पंडित दीनबधु शास्त्री सभी को पुनः रथ पर सवार होने के लिए कहते हैं। सभी लोग कुसुमपुर के आश्रम से क्रौंच दीप की राजधानी चंपापुर के लिए प्रस्थान करते हैं।”
क्रमशः -(आगे क्या हुआ..? यह जानने के लिए पढ़ें। आठवां अध्याय। इसी तरह मेरे साथ जुड़े रहे।)
लेखक :- नागेंद्र कुमार पांडेय उर्फ अम्बर मित्र जीत 7070070733
“मिलते हैं ।अगले अध्याय में…………. शुक्रिया”