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आर्यपुत्र  पौराणिक कथा (उपन्यास )अध्याय –5

नागेंद्र कुमार पांडे उर्फ अम्बर मित्र जीत

“क्रौंच द्वीप राजा मित्र जीत का अपने खास मंत्रियों एवं कुछ शुभचिंतकों के साथ कुसुमपुर के लिए प्रस्थान ।”

राजा मित्र जीत अपने विश्वासपात्रों और खास सहयोगियों  तथा मंत्रियों के साथ कुसुमपुर चलने की तैयारी करते हैं । राजा के साथ उनके खास मंत्री पंडित दीनबंधु शास्त्री , सेनापति वीर सिंह तथा और भी दूसरे शुभचिंतक कुसुमपुर चलने के लिए रथ पर सवार हैं। उनके साथ में घुड़सवार सेनाएं अपने शरीर में कवच, ढाल तथा तलवार से सुशोभित होकर यात्रा प्रस्थान के लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं । वही पैदल सेनाएं गदा ,भाला, त्रिशूल तथा दूसरे अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित होकर राजमहल के भीतर से लेकर चंपापुर के पूर्व के मुख्य द्वार तक खड़ी है । अनेकों रथ राजमहल के भीतर बाहर एवं क्रौंच द्वीप की राजधानी चंपापुर के मुख्य द्वार से आगे तक खड़ी है। सभी रथों के ऊपर स्वास्तिक चिन्ह के साथ गहरे गुलाबी रंग के ध्वजा  हवा में उड़ रही हैं। अभी दिन के एक पहर होने ही वाला है। सूरज हमेशा की भांति उदयमान है । सभी लोग राजा मित्र जीत की प्रतीक्षा कर रहे हैं। तभी सात रथो के  बीच वाले रथ में राजा मित्र जीत अपनी मुकुट को संभालते हुए, आकर विराजते हैं । क्रम में सजे सात रथों  के  पंक्ति के बीच  राजा मित्र जीत का रथ है । वही उनके दाएं तरफ मंत्री पंडित दीनबंधु शास्त्री तो बाएं तरफ सेनापति वीर सिंह का रथ है। सभी लोग लाल रंग के वस्त्रों के साथ पीले रंग के सरताज पहने हुए हैं। वहीं राजा मित्र जीत सोने की आभूषणों से खुद को सजाए। कई तरह की मालाएं एवं मस्तक पर  स्वर्ण का मुकुट धारण किए हुए हैं । तभी राजा मित्र जीत अपने सारथी को अपने हाथों से आगे बढ़ने का इशारा करते हैं । सारथी रथ का लगाम खींचकर आगे बढ़ने लगता है । मंत्री पंडित दीनबंधु शास्त्री और सेनापति वीर सिंह तथा राजा मित्र जीत तीनों आपस में बातचीत करते हुए। अब राजमहल से आगे की ओर रथ पर बैठकर धीरे-धीरे कुसुमपुर की तरफ निकल पड़ते हैं । कुसुमपुर एक बहुत ही बड़ा आश्रम है। यहां एक प्राचीन गुरुकुल भी है । बचपन में राजा मित्र जीत, सेनापति वीर सिंह ,मंत्री पंडित दीनबंधु शास्त्री तथा क्रौंच दीप के अनेकों विद्वान लेखक ,मंत्री, आचार्य तथा दूसरे लोग भी पढ़े हैं । क्रौंच द्वीप की राजधानी चंपापुर से कुसुमपुर की दूरी तकरीबन पांच योजन यानी बीस कोस की दूरी है । कुसुमपुर क्रौंच द्वीप की राजधानी चंपापुर से उत्तर और पूर्व में बसा है। यहां के मुख्य आचार्य बाबा शांडिल्य ऋषि हैं । बाबा शांडिल्य ऋषि इस क्षेत्र के साथ नैमिषारण्य द्वीप, क्रौंच द्वीप ,कन्नौज द्वीप तथा कई दूसरे द्वीपों के भी राजगुरु एवं कुल पुरोहित आचार्य भी हैं। इनका सम्मान इस क्षेत्र में बहुत ही अधिक है। धर्म शास्त्रों के मामले में इनसे आगे इस समय कोई नहीं है। कुसुमपुर में बाबा शांडिल्य ऋषि अपने कई शिष्यों ,सेवकों तथा दूसरे लोगों के साथ रहते हैं ।बाबा शांडिल्य ऋषि के बाद कुसुमपुर आश्रम के सबसे ज्यादा प्रसिद्ध दो लोग हैं। जिसमें आचार्य गोपीनाथ तथा उपाचर्य लोकनाथ जी हैं ।इस आश्रम के वैसे तो हर विधि व्यवस्था और संचालन बाबा शांडिल्य ऋषि स्वयं ही करते हैं ।परंतु इनकी अनुपस्थिति में या तो आचार्य गोपीनाथ अथवा उपाचार्य लोकनाथ करते हैं। हर दुर्लभ तरह की सिद्धियां बाबा शांडिल्य ऋषि ने अपने दोनों शिष्यों आचार्य गोपीनाथ और उपाचार्य लोकनाथ को भी प्रदान की हैं। आचार्य गोपीनाथ का चरित्र इस आश्रम में रहने वाले सभी शिष्यों से बहुत ही अलग है। आचार्य गोपीनाथ हमेशा भौतिक सुख और सांसारिक भोग की कामना अपने हृदय में हमेशा रखते हैं ।वहीं दूसरी तरफ उपाचार्य लोकनाथ इस सांसारिक मोह से बिल्कुल मुक्त हो चुके हैं।

राजा मित्र जीत की रथ यात्रा क्रौंच द्वीप की राजधानी चंपापुर से शुरू होकर दो योजन से अधिक संपन्न होने वाली है। जंगलों के बीचो बीच से इनके रथ के साथ चलने वाले सैनिक और सभी रथ बहुत ही तेजी के साथ उत्तर पूर्व की दिशा की ओर चला जा रहा है ।अब दोपहर होने को है । कुछ ही देर में राजा मित्र जीत का रथ कुसुमपुर को पहुंचने वाला है। तभी वह क्षण भी आता है। राजा मित्र जीत को उनके सबसे आगे चलने वाले सैनिक घोड़े से आकर कहता है। “राजन ! हम लोग अगले कुछ ही पल में कुसुमपुर पहुंचने वाले हैं ।”तभी कुछ देर बाद दूर से ही एक नदी दिखाई देती है। इस नदी पर एक लकड़ी का बनाया हुआ बहुत ही खूबसूरत सा फूल है । उस पुल के कुछ दूरी पर एक वाटिका भी है। जहां हर तरह के फूल खिले हैं। मोर, मृग, कोयल, तोता, खरगोश उस वाटिका की शोभा बढ़ा रहे हैं। और सबसे बड़ी खासियत तो यह है कि यहां तुलसी के पौधे का एक अलग ही बगीचा है । तुलसी के हर पत्ते में राम राम लिखा हुआ है। उस बगीचे के नजदीक बांस के फठियों से बनाया हुआ एक बहुत ही प्राचीन आश्रम है। जो एक जमीन के बहुत बड़े भूभाग पर बना है। जहां दो हजार से भी अधिक लोग रह सकते हैं ।यही वह जगह है। जिसे” कुसुमपुर” कहा जाता है । कुसुमपुर  के पूरब और पश्चिम में दो नदियां बहती हैं । राजा मित्र जीत का रथ उस नदी को ज्योंहि पार करता है। त्योंहि पांच साल से लेकर सात और सात से सौ साल तक के बूढ़े जवान लोगों को गेरुआ (भगवा) रंग के वस्त्र धारण किए लोगों को देखे जा सकते हैं। असल में ये वे लोग हैं। जो शिक्षा ग्रहण करने के लिए इस गुरुकुल और इस आश्रम में रहते हैं । इस आश्रम के बीच में भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर भी है। तथा मुख्य द्वार पर भगवान श्री कृष्ण की एक खूबसूरत मूर्ति लगाई गई है। राजा मित्र जीत अब कुसुमपुर पहुंच चुके हैं। सभी लोग अब आश्रम में क मुख्य द्वार के अंदर प्रवेश करने वाले हैं। भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति के कुछ दूरी पर एक बहुत बड़ा चबूतरा बनाया हुआ है। उसी के नजदीक एक पीपल का बहुत बड़ा वृक्ष है। जो ग्रीष्म के दिनों में इस क्षेत्र में छाया दान करता है। राजा मित्र जीत सेनापति वीर सिंह, मंत्री पंडित दीनबंधु शास्त्री सभी लोग भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति के तरफ झुक कर प्रणाम करते हैं। तथा कुछ आगे चलकर भगवान शिव की प्राचीन मंदिर में जाकर साष्टांग दंडवत प्रणाम करते हैं । वहां के पुजारी सभी को प्रसाद देते हैं। राजा मित्र जीत अपने खास मंत्री पंडित दीन बंधु शास्त्री और सेनापति वीर सिंह को लेकर आगे बढ़ते हुए। पीछे मुड़कर अपने उप सेनापति को इशारा कर, कर वहीं प्रतीक्षा करने के लिए कहते हैं। ये सभी लोग मंदिर से निकल कर आगे बढ़ते हुए उस प्रधान आश्रम के तरफ चलते हैं। जहां कुछ दूरी पार करने के बाद वहां एक जवान गेरुआ (भगवा) रंग के वस्त्र पहने हुए काले-काले दाढ़ी मूंछ और बाल वाले एक जवान शक्ल से पुजारियों की वेशभूषा परंतु उम्र से शिष्य दिखने वाला व्यक्ति से मिलते हैं। राजा मित्र जीत उस जवान व्यक्ति से पूछता है । ” महात्मा !  गुरुदेव ! शांडिल्य ऋषि से मिलने के लिए हम सब क्रौंच द्वीप की राजधानी चंपापुर से आए हैं। अतः, मेरा यह संदेश उन तक पहुंचा दें।”

तभी ,वह जवान भगवा धारी सन्यासी जोर-जोर से रामदास ! रामदास ! नाम लेकर किसी को बुलाता है और चटाई लाने के लिए कहता है ।

फिर, राजा मित्र जीत मंत्री पंडित दीनबंधु शास्त्री तथा सेनापति वीर सिंह को एक छोटी सी कुटिया में जमीन पर ही चटाई बिछाकर बैठने के लिए कहता है।

वह नौजवान भगवा धारी सन्यासी आगे की ओर तेजी के साथ चला जाता है।

क्रमश: – (आगे क्या होगा? यह जानने के लिए पढ़ें। छठा अध्याय। इसी तरह हम से जुड़े रहें।)

लेखक :-  नागेंद्र कुमार पांडे उर्फ अंबर मित्र जीत

मिलता है अगले अध्याय में…. शुक्रिया…….

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प्रबंध निदेशक/समूह सम्पादक दि ग्राम टुडे प्रकाशन समूह

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