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आर्यपुत्र पौराणिक कथा (उपन्यास )…अध्याय — 4″

नागेंद्र कुमार पाण्डेय उर्फ अम्बर मित्रजीत 

“राजा मित्र जीत को सपने में आचार्य बाबा साहब के द्वारा श्राप दिया जाना । उसके बाद नींद से जागना, एवं पुन: दूसरी सपने देखना।”

क्रौंच द्वीप के राजा मित्र जीत हाथ जोड़ कर बारंबार क्रोध में जलते हुए, ब्राह्मणों एवं ब्राह्मणी तथा ऋषि एवं ऋषिकाओं के सामने लाख मिन्नतें, अनुरोध करने के बावजूद भी आचार्य बाबा साहब अपने कमंडल के जल को दाहिने हाथ में लेकर मंत्र उच्चारण करते हुए राजा मित्र जीत के ऊपर जैसे ही श्राप देने के लिए जल  फेंकते हैं ।वैसे ही राजा मित्र जीत नहीं-नहीं करते हुए सोते हुए सिंहासन से नीचे गिर जाता है। और वह सपना भी टूट जाता है ।अब राजा नींद में बल्कि जाग रहा हैं। राजा के माथे पर पसीना साफ दिखाई दे रहा है। और पसीना टपक- टपक कर नीचे गिर रहा है। राजा मित्र जीत अभी अपने विश्राम कक्ष के ही सिंहासन पर सो रहा था। जागने के बाद वह सपना देखने के दौरान जमीन पर गिर गया था । उसके बाद पुन: जमीन से उठकर सिंहासन पर बैठ कर सोचने लगता है। राजा मित्र जीत भविष्य में होने वाली अशुभ संकेतों को लेकर सपने में हुई  चार गौ हत्याएं को लेकर भी सोचने लगता है । अब रात के तीन पहर बीत चुके हैं। विश्राम कक्ष के कुछ ही दूरी पर रंभा नाम की सबसे बड़ी पत्नी का शयनकक्ष  है। जहां रंभा अचेत अवस्था में सो रही है। राजा मित्र जीत  को उस दिन नियम के अनुसार अपनी दूसरी पत्नी के साथ सोना था । परंतु तीन पहर बीत जाने की वजह से नजदीक में ही सो रही रंभा नाम की पत्नी के शयनकक्ष में जाकर। पत्नी रंभा को बिना जगाए। उसी के साथ सो जाता है। राजा मित्र जीत जब दोबारा सोता है ।तब फिर से एक सपना देखता है कि मेरे आंगन में बड़े-बड़े सिखाओ(टिक) वाला ब्राम्हण अपने ललाट में वैष्णव तिलक लगाएं बहुत से वैदिक मंत्रों का उच्चारण कर रहे हैं । मैं अपनी तीनों पत्नियों के साथ यज्ञ की वेदी पर बैठकर । पीले रंग के वस्त्र धारण करके यज्ञ में आहुति दे रहा हूं। हर जगह वैदिक मंत्रों का उच्चारण हो रहा है। बहुत ही खूबसूरत दृश्य मेरे राजमहल और मेरे राजमहल के आंगन में दिख रहा है । मैं अपनी तीनों पत्नियों के साथ बहुत ही प्रसन्न चित्त से यज्ञ में आहुति दे रहा हूं। मैं अपने दोनों हाथों को जोड़कर उन सभी ब्राह्मणों से आशीर्वाद प्राप्त कर रहा हूं। तभी एक ब्राह्मण मेरे मस्तक पर अपना हाथ रखते हुए ।”कल्याणम अस्तु”कह रहे होते हैं कि मेरी सबसे बड़ी पत्नी रंभा जो कि मेरे साथ ही सोई हुई थी। मुझे से पहले जाग कर। मुझे जगा रही है। जैसे ही मेरी पत्नी रंभा मुझे जगाती है । मेरा स्वप्न फिर से टूट जाता है। मैं उठकर अपने पलंग पर बैठ जाता हूं ।मेरे चेहरे पर एक आश्चर्यजनक भाव दिख रहा है ।जिसे मेरी सबसे बड़ी पत्नी रंभा पढ़ लेती है । फिर मुझसे पूछने लगती है ।तभी मैं चुपचाप वहां से उठकर अपनी पत्नी रंभा को कुछ भी नहीं बताते हुए बाहर की तरफ निकलता हूं। सबसे बड़ी पत्नी रंभा के शयनकक्ष से बाहर निकलते हैं ।दूसरे कक्षा में प्रवेश करके पूरब की तरफ देखने पर प्रकृति का बहुत ही खूबसूरत नजारा दिखाई देता है। सुबह फिर से चिड़ियों की बोलने की आवाज सुनाई देती है। अनेकों तरह की चिड़ियां बोल रही है ।वहीं जैन मंदिर में नवकार मंत्र के स्तुति हो रही है तो बौद्ध स्तूप उसे भी बौद्ध मंत्र साफ-साफ सुनाई दे रहा है । चंपापुर के मुख्य द्वार के नजदीक भगवान शिव के मंदिर में भी घंटियां बजने के साथ-साथ भगवान शिव को वहां के पुजारी मंत्रों के साथ दूध से अभिषेक कर रहे हैं । एक तरफ इन वातावरण से सुबह का वातावरण बहुत ही सुंदर लग रहा है । पूरब दिशा से सूरज की किरने मेरे पूरे राजमहल को प्रकाशित कर रही हैं । परंतु मेरे अंदर एक बेचैनी सी महसूस हो रही है ।क्योंकि कल रात जो मैंने दो सपने देखे। वह दोनों बहुत ही अलग तरह के थे। एक सपने में मैंने चार गायों की हत्या कर दी। फिर उसके बाद ब्राह्मणों के द्वारा मुझे बहिष्कार किया गया। और श्रापित किया गया। वही दुसरे सपने में मुझे ब्राह्मणों के द्वारा मेरे राजमहल के आंगन में आशीर्वाद दिया जा रहा था। अब इसका क्या मतलब है…? मुझे समझ नहीं आ रहा है ।इसी विचार में मैं राजमहल के नजदीक वाले फुलवारी में पूरब से पश्चिम ,उत्तर से दक्षिण घूम ही रहा था कि मेरे मंत्री पंडित दीनबधु शास्त्री एवं सेनापति वीर सिंह दोनों ही मेरे तरफ बहुत तेजी के साथ चले आ रहे हैं । मैं फुलवारी में लगी झूला पर यूं ही बैठा ही था कि सेनापति वीर सिंह और मंत्री पंडित दीनबंधु शास्त्री आकर उन दोनों ने हाथ जोड़कर मुझे अभिवादन किया।

मैं भी मुस्कुराते हुए उन दोनों को हाथ जोड़कर ही अभिवादन किया । तभी, मंत्री पंडित दीनबंधु शास्त्री बोलते हुए मेरे बहुत करीब आ जाते हैं। सेनापति वीर सिंह भी एकदम नजदीक आकर खड़े हो जाते हैं।

तभी मंत्री पंडित दीनबंधु शास्त्री बोलते हैं । “हे महाराज…!  आज भी आप ऊपर से तो मुस्कुरा रहे हैं। परंतु, आपके अंदर बेचैनी साफ दिख रही है। क्या हुआ…? कृपया करके बताएं।”

तभी, सेनापति वीर सिंह बोलते हैं । “हां….! हां….! महाराज…! जो भी परेशानी हो । हम सबको बताएं…..।”

तब राजा मित्र जीत नीचे की तरफ देखते हुए बोलते हैं।  “क्या कहें….? मंत्री जी …! जब आप मुझसे मिलकर विश्राम कक्ष से राजदरबार की ओर चले गए । तब  भी मेरी चिंता खत्म नहीं हुई। मैं उसी तरह सोचता रहा उस दिन, दिन भर सोचता रहा और अंत में शाम होने पर विश्राम कक्ष के सिंहासन पर ही मैं सो गया। उस रात मे एक बहुत ही विचित्र सपना देखा। उस सपने में मैंने देखा कि आप सबके साथ जंगल में शिकार खेलने मैं गया हूं । जहां एक कस्तूरी हिरण भाग रही है । जिसका पीछा करता हुआ। मैं आप लोगों से बिछड़ कर , एक बहुत ही घने जंगल को पार करते हुए । केले के बगीचा में चला गया। जहां उस हिरण को मारने की कोशिश किया। परंतु अनेकों बार नाकाम होने के बाद आखिर में उस कस्तूरी हिरण  पर आखिरी तीर चलाए और भाला भी साथ में फेंक कर मारा। परंतु मेरे आखरी तीर और भाले के प्रहार से एक ही  साथ चार गौ माताओं की हत्या हो गई इस सभी गांव माताएं ब्राह्मणों के थे। फिर ,मैं जिस जगह था वह पुंडरीकाक्ष नाम का नगर था । जहां के निवासी ब्राह्मण और ऋषि लोग थे। सभी ने आकर मुझे श्रापित किया । जैसे ही श्राप देने के लिए एक महर्षि मुझ पर जल फेंका। मेरी नींद टूट गई।”

उसके बाद सेनापति वीर सिंह ने कहा “फिर क्या हुआ…?”

तब राजा मित्र जीत बोले ।क्या बताएं..? “सेनापति जी  ! मेरी नींद टूट गई ।” और मैं उठ कर बैठ गया । उस दिन बहुत गंभीर चिंता के साथ मैं अपनी पहली पत्नी  रंभा के साथ जाकर सोया। उन्हीं के शयनकक्ष में सोया था कि मैंने दूसरी सपना देखा । इस बार मैंने देखा कि मेरे राजमहल के आंगन में, मैं अपने तीनों पत्नियों के साथ वैदिक मंत्रों का उच्चारण कर रहा हूं । मेरे घर में वैदिक मंत्रों के पाठ से पूरा पूरा राजमहल मंत्रों के शंखनाद से गुंज रहा है ।तभी, एक ब्राह्मण मेरे मस्तक पर अपने हाथ रख कर, आशीर्वाद दे ही रहे थे कि मेरी पहली पत्नी रंभा मुझे नींद से जगा दी और इसके बाद में इस बगीचा में आकर ,घूमते हुए सोच रहा था ।तभी आप दोनों यहां आ गए।

उसके बाद राजा मित्र जीत बोले ।”मुझे तो लग रहा है कि अब राजगुरु शांडिल्य ऋषि से मिलने के लिए हम सभी को कुसुमपुर चलनी चाहिए। जहां उनसे मिलकर इन दोनों सपनों का फल और अपने पुत्र प्राप्ति के लिए भी कोई यज्ञ- अनुष्ठान करवाने के लिए आग्रह करें।”

फिर राजा मित्र जीत बोलता है।”आप लोगों की क्या राय है?”

तभी सेनापति और मंत्री पंडित दीनबंधु शास्त्री, राजा मित्र जीत की बातों का समर्थन करते हैं और हामी भरते हैं।

क्रमश: -(आगे क्या हुआ है यह जानने के लिए पढ़ें पांचवा अध्याय इसी तरह हम से जुड़े रहे।)

लेखक:- नागेंद्र कुमार पांडे उर्फ अंबर मित्र जीत

मिलते हैं अगले अध्याय में…. तब तक के लिए शुक्रिया..

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प्रबंध निदेशक/समूह सम्पादक दि ग्राम टुडे प्रकाशन समूह

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