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आर्यपुत्र पौराणिक कथा (उपन्यास )…..अध्याय 3

लेखक :- नागेंद्र कुमार पांडे उर्फ अम्बर मित्र जीत

“सपने में राजा मित्र जीत का कस्तूरी हिरण का पीछा करता हुआ। ब्राह्मणों के नगर, पुंडरीकाक्ष नगर में प्रवेश और चार गौ हत्याएं ।”

राजा मित्र जीत शिकार का निशाना साधे हुए ।अपने धनुष पर तीर लगाए हिरण का पीछा करता हुआ ।जंगलों, पहाड़ों को लांघता हुआ। एक नए रमणीय नगर में प्रवेश करता है। यह नगर ब्राह्मणों का नगर है। राजा इस शिकार के लिए सुबह के कुछ घड़ी बाद ही निकला है ।परंतु ,अब सूरज पश्चिम की दिशा में यात्रा कर रहा है। हिरण अपनी जान बचाए। यहां से वहां भाग रही है । राजा उसका पीछा करता हुआ। किसी भी दुर्गम और कष्ट को झेलने को तैयार है ।फिलहाल, राजा एक केले के बगीचे के अंदर प्रवेश कर चुका है। यह केले का बगीचा और यह पूरा ही नगर बाबा साहब नाम के एक ब्राह्मण आचार्य का है। इस नगर में तकरीबन निवास करने वाले सभी निवासी ब्राह्मण धर्म को मानते हैं ।वही इस नगर का नाम पुंडरीकाक्ष नगर है। यहां हर तरफ हर प्रकार के फूल पत्तियां ,दुर्लभ प्रजाति के पेड़ पौधे लगाए गए हैं। यहां किसी भी जीव की हत्या करना प्रतिबंधित है। बड़े-बड़े शिलाओं और पर्वतों को काट काट कर बहुत सी बातें लिखा हुआ है। जैसे कि ” पुंडरीकाक्ष नगर में आपका स्वागत है।” पुंडरीकाक्ष नगर में जीव हत्या महा हत्या है। वसुधैव कुटुंबकम । ” राजा इतनी जल्दी में है कि कहीं भी लिखा हुआ‌। एक भी शिलालेख न तो पढ़ा है। और नहीं देखा है । नहीं देखना चाहता है। क्योंकि, राजा अभी सिर्फ अपने लक्ष्य के रूप में एक हिरण को पीछा करता हुआ। शिकार करने के विचार से घोड़े के साथ बहुत ही तेजी के साथ कस्तूरी हिरण का पीछा कर रहा है। अब हिरण को भी आभास हो चुका है कि इस राजा के जरिए मेरी हत्या कर दी जाएगी। तभी वह कस्तूरी हिरण  एक केले पेड़ों के झुंड में छुप जाती है । राजा की आंखों से जब कस्तूरी हिरण ओझल होती है। तब राजा बहुत तेजी के साथ हिरण, जिस ओर जाती है। उसी दिशा में घोड़ा दौड़ता है ।अब यहां से गुफा नुमा केले के पेड़ों के द्वारा बनाया गया है। मतलब यहां एक ही कतार में कई केले के पेड़ लगाए हुए हैं। हिरण और घोड़े तथा राजा तीनों की सांसे बहुत ही तीव्र गति से चल रही है। तभी राजा घोड़े से उतर कर इधर-उधर देखने लगता है ।कुछ दूरी पर वह कस्तूरी हिरण  भागती हुई दिखाई देती है। राजा मित्र जीत पुनः अपने घोड़े पर बैठकर। उस हिरण का पीछा करता है। पीछा करता हुआ हिरण दो सौ कदम की दूरी पर ही भाग रही होती है ।हिरन इस बार उत्तर दिशा में भाग रही है ।उत्तर दिशा में कुछ दूरी पर मंडप नुमा तकरीबन एक हजार से अधिक घर बनाया हुआ है। अब राजा अभिलंब अपने धनुष पर तीर चढ़ाए हुए तीर को हिरण की तरफ चला देता है। उसी क्षण अपने पीछे पीठ में बांधे हुए लंबी सी (शुल) भाला को भी हिरण को मारने के लिए बहुत जोर से कस्तूरी हिरण की तरफ फेंकता है । हालांकि, इस समय कस्तूरी हिरण साफ से नहीं दिख रही है। क्योंकि हर अभी कुछ नहीं दिख रहा।जिस ओर हिरण भाग रही है। वहां भी और राजा जहां खड़ा है। वहां भी हर स्थान पर  केले के पत्ते पत्ते दिख रहे हैं। राजा मित्र जीत इसी दौरान आवेश में आकर तीर और भाला फेंक कर बहुत ही तेजी के साथ आगे बढ़ते हैं।  उसी क्षेत्र में अनेकों गाईंयां घास चर रही होती है। हिरण इस बार भी अपनी जान बचाने के लिए उछलकर, राजा के निशाने से अलग भाग जाती है। और और भागने में सफल होती है। राजा मित्र जीत के एक ही तीर और भाला से चार गायों की हत्या हो जाती है। अभी राजा को यह मालूम नहीं है। क्योंकि, आसपास केले के पेड़ों की बहुतायत मात्रा होने की वजह से राजा इन बातों से अनभिज्ञ है कि मेरे तीर और भाला  से 4 गायों की भी हत्या हो गई ।और कस्तूरी हिरन बचकर भाग गई ।धनुष से तीर  और भाला चलाने के बाद राजा बहुत ही शीघ्रता के साथ अपने शिकार को पकड़ने के लिए तेजी के साथ घोड़े से दौड़ता हुआ। वहां पहुंचता है। जहां देखता है कि हिरण का शिकार इस बार भी नहीं हुआ । मेरे एक ही तीर और भाला से चार गायों की हत्या हो गई है। अब वहां का ऐसा दृश्य है। मानो ,चारों  गाईंयां वही तड़पती हुई। अपनी अंतिम विदाई की प्रतीक्षा कर रही हैं ।चारों गायों के आंखों से आंसू के धाराएं और शरीर से रक्त सागर की तरह बह रही  हैं।जितनी दूरी पर उन चारों गाया तड़प रही हैं । उतनी दूरी की पूरी धरती उन चारों गाईंयों के रक्त में रंग कर लाल -लाल हो गई हैं ।राजा जब वहां पहुंचता है ।तब कुछ ही दूरी पर पहुंचने के बाद, उन चारों गायों को तड़पता हुआ देखता है। बहुत ही शीघ्रता के साथ घोड़े से उतर कर ।उन चारों गाईंयों के पास, बारी-बारी से जाता है। अब राजा को कुछ नहीं सुझ रहा  है।क्या करें..? कहां जाएं..? राजा के चेहरे पर मुसीबत की लकीर साफ दिखाई दे रही है। राजा का चेहरा लाल होता जा रहा है ।राजा बारी-बारी से गायों की बहती हुई रक्त को रोकने का प्रयास करता है।  उन गायों की तड़पती हुई पीड़ा को देखकर राजा मित्र जीत भी रोता  है ।तभी कुछ दूरी पर मंडप नुमा घर एक बहुत खूबसूरत घेरादार बनाया हुआ, घर के तरफ से केले के पत्तों को चीरता हुआ। एक सफेद दाढ़ी मूछें और बाल वाला बहुत ही लंबा तगड़ा परंतु 80 साल से भी अधिक उम्र का अपनी ललाट में भगवान शिव की तरह चंदन का लेप लगाएं। उजले रंग का पूरे शरीर में पटीदार धोती और गमछा लिये। जटाओं को रुद्राक्ष के मालाओं से सुशोभित ।एक व्यक्ति इसी तरफ आ रहा है। यह “आचार्य बाबा साहब” हैं। जो पुंडरीकाक्ष नगर के मुख्य आचार्य हैं। उन्हें अपनी ओर आता देख राजा मित्र जीत को और भी भय सताने लगता है ।देखते ही देखते ।आचार्य बाबा साहब, राजा मित्र जीत के बहुत ही करीब आ जाते हैं ।ज्योंहि, आचार्य बाबा साहब राजा मित्र जीत के नजदीक आते हैं। त्योंहि ,वहां ब्राह्मणों- ब्राह्मणी ,ऋषि- ऋषिकाओं की एक बहुत बड़ी जनसंख्या राजा के आस पास आकर खड़ी हो जाती है ।वे सभी ब्राम्हण -ब्राह्मणी, ऋषि और ऋषिकायें तीन ही रंग के कपड़े  धारण किए हुए हैं। एक उजले रंग के। येलोग  राजा मित्र जी के पश्चिम की दिशा में खड़े है। वहीं दूसरी तरफ गेरुआ(भगवा) रंग के, जो  राजा मित्र जीत से पूरब दिशा में खड़े है ।  वही  लाल रंग वस्त्र धारण करने वाले लोग उत्तर और दक्षिण की दिशा में खड़े हैं ।राजा मित्र जीत इन सभी के बीचो-बीच खड़ा है। पुंडरीकाक्ष नगर में ब्राह्मणों की तीन बड़ी जनसंख्या रहती हैं ।जिसमें कुछ ऋग्वैदिक  ब्राम्हण तथा कुछ शाम वैदिक एवं कुछ अथर्व वैदिक धर्म को मानने वाले ब्राम्हण  हैं। वही इन ब्राह्मणों में भारद्वाज गोत्र ,वत्स गोत्र और गर्ग गोत्र यह तीन तरह के प्रमुख गोत्र- धारी ब्राह्मण पुंडरीकाक्ष नगर में रहते हैं ।फिलहाल यह सभी ब्राह्मण राजा मित्र जीत के इर्द-गिर्द आकर खड़े हैं। सभी राजा मित्र जी को टकटकी  नजरों से देख रहे हैं ।यह सभी ब्राह्मण राजा मित्र जीत के आसपास लगभग 5 से 7 कदम की दूरी पर खड़े हैं। राजा मित्र जीत चारों तरफ अपने मस्तक घुमा घुमा कर उन सभी को देख रहा है। राजा मित्र जीत को समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें..? तभी, उस ब्राह्मणों की जमात के सबसे प्रतिष्ठित आचार्य दो कदम आगे चलकर । राजा को तड़पती हुई गौमाता की तरफ दाहिने हाथ से इशारा करते हुए दिखाता है।

आचार्य बाबा साहब बोलते हैं । “ऐ ! मस्तक पर सोने के मुकुट धारण करने वाले ! पीले धोती और गुलाबी रंग के वस्त्रों से सुशोभित चांडाल दुर्व्यवहार करने वाले ! तुम कौन है..??”

राजा मित्र जीत दोनों हाथों को जोड़ते हुए। आचार्य बाबा साहब की तरफ झुक कर बोलता है ।”हे वेदों को जानने वाले धर्म रक्षक ! मैं आपके नगर के लिए एक अजनबी हूं परंतु मेरी पहचान यह है कि मैं क्रौंच द्वीप का राजा मित्र जीत हूं । दुर्भाग्य से आपके नगर में पहुंच गया हुं।”

आचार्य बाबासाहेब अपनी आंखों को लाल-लाल करके बोलते हैं । “क्या तुम्हें यह जानकारी नहीं है..? मेरी इस पुंडरीकाक्ष नगर में किसी भी जीव की हत्या करना बहुत बड़ा अपराध है..?”

राजा मित्र जीत हाथों को जोड़ते हुए बोलता है। हे भूदेव ! मैं एक कस्तूरी हिरण का पीछा करता हुआ ।यहां तक पहुंच गया और अनजाने में मुझसे इन गौ माताओं की हत्या हो गई ।मैं जानबूझकर नहीं किया। शिकार खेलने के दौरान मैं अपने तीर और भले  से एक उस कस्तूरी हिरण के तरफ फेंका था। पर  मुझे यह पता नहीं था कि आगे गौ माताएं घास चल रही हैं। अनजाने में यह अनहोनी मुझ से हो गया।”

राजा मित्र जीत का पूरा शरीर थरथर कहां पर है।

उसके बाद उस ब्राह्मण के झुंड में से एक लाल रंग के पहने हुए 35 साल की आयु का एक ब्राह्मण आगे आकर राजा मित्र जीत को बहुत तीखे शब्दों से प्रताड़ित करते हुए। सभी लोगों को उस राजा का बहिष्कार करने के लिए कहता है। इसके बाद सभी ब्राह्मण और ब्राह्मणी उस ब्राह्मण का समर्थन करते हैं ।फिर, सभी ब्राह्मण और ब्राह्मणी एक ही स्वर में बोलते हैं।

“हां हां सभी मिलकर इस राजा का बहिष्कार करो।”

“इस राजा को सभी मिलकर श्राप दो। श्राप दो ।श्राप दो।”

तभी आचार्य बाबा साहब अपने कमंडल के जल को अपनी दाएं हाथ से बाएं हाथ में जल लेकर मंत्रों का उच्चारण करने लगते हैं। राजा वही सामने दोनों हाथ जोड़कर सभी से विनती करता है। नहीं…! नहीं..! मुझे श्राप ना दें।। मैं बहुता अभागा हूं ।मुझे माफ़ करें ।मुझे क्षमा करें।।”राजा लगातार विनती करता है।”

क्रमश: – (आगे क्या हुआ ? यह जानने के लिए पढ़ें। चौथे अध्याय इसी तरह हम से जुड़े रहे……)

लेखक नागेंद्र कुमार पांडे उर्फ अंबर मित्र जीत

मिलते हैं अगले अध्याय में….…

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प्रबंध निदेशक/समूह सम्पादक दि ग्राम टुडे प्रकाशन समूह

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