डॉ पंकजवासिनी
देववाणी संस्कृत की , हिंदी सुता महान ।
चल कर राह प्रसिद्धि की, पग पसारे जहान।।
जो बोले लिखती वही , वैज्ञानिक आधार ।
सुनना लिखना एक सा,भाषा है दमदार ।।
बाॅंह पसारे नेह की ,सबको अपना जान ।
भाषा सब अपना रही, देकर सबको मान ।।
गुड़ सी यह मीठी लगे, सबपर नेह लुटाय।
जो भी आए पास में, उसको गले लगाय।।
जग की भाषा तीसरी , बनकर हिंदी आज।
विश्व पटल पर शान से, भोग रही है राज ।।
बाॅंधकर एक सूत्र में, बन गई कंठहार ।
सकल राष्ट्र को जोड़ती, बहा प्रेम की धार ।
माथे की बिंदी बनी, बनी राष्ट्र की आन ।
हिंदी आत्मा देश की, यही हमारी शान।।
डॉ पंकजवासिनी
असिस्टेंट प्रोफेसर (हिंदी विभाग)
राम सेवक सिंह महिला काॅलेज, सीतामढ़ी ,बिहार ।