१) अपना संक्षिप्त परिचय दें
नाम:- शंकर कुमार पाण्डेय “भूषण
ग्राम+पो0+थाना:- बाथ जिला:- भागलपुर (बिहार) पिन कोड:- 813108
२) आपका आगमन साहित्य के आँगन में कब हुआ? अर्थात् आपने कब से लिखना आरंभ किया?
1982 से अद्यतन
३) आप कौन कौनसी विधा में लेखन करते हैं, अपनी किन्हीं श्रेष्ठ एक दो रचनाओं को हमारे बीच साझां करें।
मात्रिक में:- चौपई /जयकरी, लीला-छंद, राधिका, सारस, गीता, सार, तांटक, त्रिभंगी, कुंडलियाँ, रोला, दोहे, चौपाइयाँ, गीतिका, विधाता जैसे और भी कई छंदों में सृजन
वर्णिक/वार्णिक में :- तोटक, स्त्रग्विनी, घनाक्षरी छंद में मनहरण, जनहरण, रूप-घनाक्षरी, हरिहरण, डमरू, कृपाण वगैरह…
मानस में श्रीराम
विधा:-दोहा-मुक्तक
धनुष-यज्ञ
धनुष उठाने में विफल, एक-एक रणधीर।
लज्जित होकर लौटते, जैसे केकी कीर।।
भूप सहस दस एकदा, टरे न टारनहार,
गुरुराज्ञा पाते सहस, उठे सहस रघुवीर।।
*झुके सयन करुणा अयन,*
*अति विनम्र कर जोर,*
*तीन प्रदक्षिण भक्तिमय,*
*किये स्तवन कुछ थोर।*
*शाश्वत शिव सामर्थ्य के,*
*मैं राघव प्रणिपात,*
*सदा अनुग्रह कर कृपा,*
*लज्जा राखिय मोर।।*
*विष्णु रूप याचन किये,*
*विनिमय सह स्वीकार,*
*दृढ़-निश्चय हो कीजिये,*
*श्री-पति अंगीकार।*
*पाप विनाशक चाप को,*
*भंजन करिये आप,*
*राम रमापति कर लिए,*
*हुआ घोर टंकार।।*
न्याय नहीं था तोड़ना, टूटा शिवधनु प्रज्ञ।
गर्वित थे कुछ सोचते, जैसे कोई अज्ञ।।
स्तब्ध सभा हो देखती, आये भृगुपति भृंग।
मुस्काते प्रभु राम जी, सुयश देख सर्वज्ञ।।
शंकर कुमार पाण्डेय “भूषण”
मनहरण घनाक्षरी कवित्त छंद
कवि/कवयित्री का संदेश
अपना संदेश यही भेजना है दूर कहीं,
सत्व-प्रेम भाव युक्त –
*करुणा प्रधान हों!*
सुरसरि धार मध्य पावन प्रभात सद्य,
लेख्य-शिल्प में प्रयुक्त –
*शब्द सन्निधान हों!*
अनुदित शब्द-साध्य शरत आराध्य नव,
वेदितव्य सूक्त -मंत्र –
*भव्य प्रणिधान हों!*
नेति नवचेतना में नहीं कुछ अनवद्य,
बँध यति छंद -मुक्त –
*सरस विधान हों!*
शंकर कुमार पाण्डेय “भूषण”
४) आप नवोदित रचनाकारों को अपने साहित्यिक अनुभव द्वारा क्या सुझाव देना चाहेंगे?
“वाक्यं रसात्मकं काव्यम्” से लेकर अलंकरण, से पूर्व व्याकरण का प्राथमिक वर्तनी की शुद्धता, भाव-प्रवणता, गति-यति, गेयता इत्यादि के द्वारा ही समृद्ध साहित्य सृजन कर सकते हैं। छंद मुक्त तुकांतता से स्वयं को ऊपर उठाएं।
६) आपके अनुसार हिंदी के उत्थान हेतु साहित्यकारों को किस तरह कौन सा कार्य करना चाहिए?
सामाजिक कुरीतियों पर प्रेरक-संदेश जो प्रभावोत्पादक हों, परोसते रहना चाहिए। यह तभी संभव है जब आपका समृद्ध लेखन रुचिकर भी हों। यदि साहित्यकार पाठकों के हृदय को छूने की क्षमता रखते हों। सतत प्रेरणा बने रहें। संदेश हृदयग्राही हों।
७) क्या आप इस बात से सहमत हैं कि हम अपनी कलम की मदद से सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं यदि हाँ, तो कैसे?
शौक-ए-दीदार अगर हो तो नज़र पैदा कर! कलम के ताक़त की सच्ची पहचान हो जाने पर शायद तलवार की तमन्नाएं खाक़ हो जाएंगी।
अंत में एक आखिरी प्रश्न कहिए या सुझाव जो हम आपसे जानना चाहते हैं
क्या दि ग्राम टुडे प्रकाशन समूह आप रचनाकारों के लिए कुछ बेहतर कर पा रहा है? यदि हाँ, तो हमें अपना सुझाव दें अथवा नहीं तो बताएं कि हम कैसे अपने प्रकाशन समूह में कुछेक बदलाव ला सकते हैं?
एक सराहनीय प्रयास के लिए आपने जो संकल्प लिया है, यही तो “साहित्यिक-यज्ञ का पावन अनुष्ठान है” तबतक समर्पित रहें जबतक ये पावन-यज्ञ के भस्म से लोग भाल-सुसज्जित करने लगें। कभी-कभी ऐसा लगने लगे लोगों में जागृति नहीं है तो हमारे संयम को ललकारा जा रहा है की भावना प्रवल होने का आह्वान माना जाना चाहिए।