लब्ध प्रतिष्ठित लेखिका उषा किरण खान से
साहित्यकार चित्रकार सिद्धेश्वर की भेंटवार्ता
♦️सोशल मीडिया साहित्य को आमजन तक पहुंचाने में सर्वाधिक सराहनीय भूमिका का निर्वाह किया है !”
🔷 लघु पत्रिकाएं नई प्रतिभाओं की पाठशाला है l
[] उषा किरण खान []
{ आज साहित्यकारों में कुछ लोग अपने कृतित्व के कारण जाने पहचाने जाते हैं, तो कुछ लोग अपनी खास व्यक्तित्व के कारण ! हिंदी साहित्य जगत में उषा किरण खान एक ऐसा नाम है, जो अपने व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों की विशेषता के कारण पूरे देश ही नहीं विदेशों में भी जानी पहचानी जाती है l महिला लेखिकाओं में अपना एक अलग विशिष्ट स्थान रखती है l मृदुवाणी और सहज सरल स्वभाव के कारण लगभग हर व्यक्ति के साथ वे आत्मिय रूप से जुड़ जाती है l
यह हमारा सौभाग्य है कि ऐसे प्रखर व्यक्तित्व कृतित्व के धनी लेखिका का सानिध्य प्राप्त हुआ है l मेरी दो पुस्तकों का लोकार्पण भी उनके हाथ हुआ है l और ऐसे अवसर पर,अक्सर वह कहा करती है -” सिद्धेश्वर की कविताएं और रेखाचित्रों की आरम्भ से ही प्रशंसक रही हूं मैं l सिद्धेश्वर को मैं तब से जानती हूं,जब वे पटना के करबिगहिया मोहल्ले में रहते थे l और मैं पटना में ही डाक बंगला स्थित बंदर बगीचा में रहा करती थी l बहुत छोटा थे और अक्सर मेरे घर हाफ पैंट पहन कर आया करते थे l!”
इस क्रम में, मैं बतलाता चलूं कि मैं अक्सर उन्हें अपनी संस्था की साहित्यिक गोष्ठियों में आमंत्रित करने के उद्देश्य जाया करता था l उस समय से ही मुझे लिखने पढ़ने और साहित्यकारों से भेंटवार्ता लेने की अभिरुचि जाग गई थी l मैंने पहला साहित्यिक भेंटवार्ता उषा किरण खान दीदी से ही लिया था , संभवत आठवें दशक में l उनसे ली गई मेरी पहली भेंटवार्ता लखनऊ की मासिक पत्रिका सुपर ब्लेज तथा दैनिक अखबार प्रभात खबर के साहित्यिक परिशिष्टाँक में प्रकाशित हुई थी l आज उषा किरण खान दीदी जिस मुकाम पर हैं उनकी प्रसिद्धि और दीर्घायु की कामना करते हुए अपनी मासिक पत्रिका सोचविचार के लिए भेंटवार्ता लेने की इच्छा जाग उठी l हालांकि वे बहुत अस्वस्थ चल रही हैं और कुछ अधिक बोल पाने की स्थिति में नहीं है l किंतु सोच विचार पत्रिका एवं हमारे प्रति उनका यह लगाव है कि इतनी परेशानी और और अस्वस्थता के बावजूद हमारे सवालों का खुलकर जवाब दिया उन्होंनेl
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मुझे वह दिन आज याद आ रहे हैं जब वातायन पब्लिकेशन से प्रकाशित हमारी लघुकथा पुस्तक ” भीतर का सच ” का लोकार्पण उन्हीं के हाथों हुआ था l उसके बाद आज उनके आवास पर मैं उनके सामने था, बिल्कुल एक पारिवारिक सदस्य की तरह l व्यवहार में बिल्कुल नहीं लगा कि हमारे बीच इतने समय का अंतराल भी था l उनकी बातें हमें अतीत में ले गयीं।
अक्सर लोग प्रसिद्धि पाने के बाद, अपने जड़ से कट जाते हैं अतीत को भूल जाते हैं जबकि मैं अतीत को बहुत महत्व देता हूं l किंतु बहुत कम ऐसे लोग हैं, जो अतीत को वर्तमान के दहलीज पर जीवंत रख पाते हैं l ऐसे कुछ लोग ही मेरे सामने उदाहरण के रूप में है, जिनमें एक है उषा किरण खान l
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आइये, भेंटवार्ता के पहले मैं उनका संक्षिप्त परिचय भी देना चाहूंगा l 07 जुलाई 1945 को लहरिया सराय दरभंगा बिहार में जन्मी उषा किरण खान की भाषा हिंदी के साथ-साथ मगही में भी रही है l उन्होंने मूलतः उपन्यास कहानी और नाटक का अधिक सृजन किया है । पानी पर लकीर,फागुन के बाद, सीमांत कथा, रतनारे नयन (हिंदी ), मंजिल, भामती और सिरजनहार ( मैथिली) उपन्यास प्रकाशित हो चुकी है l उनकी प्रकाशित कथा कृतियों में गीली पाक, कासवन,दुबजान , विवश विक्रमादित्य,जन्म अवधि, घर से घर तक (हिंदी ), कांचे ही बॉस ( मगही ) तथा कहां गए मेरे उगना, हीरा डोम (हिंदी ), फागुन,एक सरिठाढ़, मुसकौल बला ( मैथिली ) नाटक भी प्रकाशित है! बाल नाटकों में डैडी बदल गए हैं, नानी की कहानी, सात भाई और चंपा, चिड़िया चुग गई खेत (हिंदी), तथा घंटी से बान्हहल राजू,, बिरड़ो आबिगेल ( मैथिली ) प्रमुख है!
इतनी अधिक पुस्तकों का सृजन करने के बावजूद बहुत कम लोगों को ऐसे श्रेष्ठ सम्मान पुरस्कार मिले हैं जो बहुत कम लेखकों को नसीब होता है l साहित्य अकादमी पुरस्कार के साथ-साथ उषा किरण खान को हिंदी सेवी सम्मान, महादेवी वर्मा सम्मान, दिनकर राष्ट्रीय पुरस्कार, कुसुमांजलि पुरस्कार, विद्यानिवास मिश्र पुरस्कार, भारत भारती पुरस्कार के साथ-साथ पद्मश्री सम्मान भी प्राप्त हुए हैं l तो आइए ,ऐसी महान विभूति से आपको रूबरू कराएं l }
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🔮 सिद्धेश्वर: साहित्य सृजन के प्रति आपकी रूचि कब और कैसे जागी ?
♦️ उषा किरण खान: ” जबसे लिखने का शऊर आया, लिखने लगी। वह साहित्य है, यह पता भी नहीं था ! “
🔮 सिद्धेश्वर: राष्ट्रीय स्तर पर आपकी पहचान कथा लेखिका के रूप में है ! अधिकांश कथाकारों ने अपनी लेखन का आरम्भ कविता से किया है ! क्या आप भी शुरुआती दौर में, कविता लिखी हैं ? और इसमें आपको कहां तक सफलता मिली है ?
♦️ उषा किरण खान : ” मैंने भी कवितायें लिखीं पहले। आकाशवाणी में मंचों पर कवितायें पढीं। स्कूल- कॉलेज मैग्जिन तक सीमित रहा। इतने अवेयर नहीं थे कि और कही छपाते।”
🔮 सिद्धेश्वर : आपकी पारिवारिक पृष्ठभूमि, साहित्यिक दृष्टिकोण से, गरिमामई रही है !आपको अपनी पहचान बनाने में, पारिवारिक पृष्ठभूमि कहां तक सहयोगी साबित हुई है ?
♦️ उषा किरण खान : बाबा नागार्जुन के साथ मंचों पर कविता पढती थी । यह पृष्ठभूमि तो थी, परंतु पटना रेडियो की युवा कवि के रूप में चुनी गई । तब मैं मगध महिला कॉलेज की सामान्य छात्रा थी। पुनः जब कथा लिखने लगी तब कहानी में पहली कहानी छपी। श्री श्रीपत राय ने कहानी चुनी थी, मुझे नहीं जानते थे सन् 1978 में। न ही धर्मवीर भारती को कुछ भी पता था कि मैं कौन हूँ। मेरा कहना है कि मेरे साहित्य को उसकी गुणवत्ता के लिये चुना गया।
🔮 सिद्धेश्वर: एक व्यक्तिगत सवाल करने के लिए आपसे क्षमा चाहूंगा! लोगों की पहचान कभी-कभी उनके नाम से भी होती है ! आपका नाम उषा किरण खान ! एक तरफ उषा किरण, दूसरी तरफ खान ?
♦️ उषा किरण खान:मिथिला के मैथिल ब्राह्मण में खाँ- खाण उपाधि पारंपरिक रूप से कुछ हजार वर्ष से प्रचलित हैं। मेरे पति की पारिवारिक उपाधि है जो परंपरानुसार मुझे मिली है। इसमें कोई क्रांति नहीं न ही चकित होने वाली बात है। हाँ यह जरूर है कि हम बेहद संकीर्णता से इन चीजों को लेते हैं।
सिद्धेश्वर : आपने हिंदी के अतिरिक्त मैथिली और भोजपुरी में भी जमकर लिखा है! और सृजनात्मक दक्षता भी प्राप्त किया है ! आपकी रचनाओं को अधिकांश किस भाषा के लोगों ने अंगीकार किया है ?
♦️ उषा किरण खान :मैथिली और हिंदी में लिखा है। भोजपुरी में अनुवाद हुआ है। दोनों भाषाओं में मान्यता है। दोनों में पुरस्कृत हूँ।
🔮 सिद्धेश्वर : सिर्फ हिंदी भाषा में आपका सृजनात्मक लेखन होता तो, आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार नहीं मिलता !, क्या आपको ऐसा महसूस होता है ? क्योंकि हिंदी लेखन में लिखी गई आपकी पुस्तकों को इस योग्य अब तक नहीं समझा गया ?
♦️ उषा किरण खान : साहित्य अकादमी के पुरस्कार संविधान की कुछ मान्यताप्राप्त भाषाओं के लिये है जिसके अंतर्गत हिंदी और अंग्रेजी भी है। यहाँ सब बराबर हैं। नीति तो नीति है।
🔮 सिद्धेश्वर: वह क्या कारण हो सकता है कि आज तक महादेवी वर्मा को साहित्य अकादमी पुरस्कार नहीं मिला, जबकि उन्होंने कई श्रेष्ठ कविताओं की पुस्तकों का सृजन किया है l
♦️ उषा किरण खान : ऐसा इसलिए क्योंकि,हिंदी रचनाकार, कई-कई लाख हिंदी भाषी रचनाकारों की प्रतियोगिता में शामिल हो जाते हैं, जबकि क्षेत्रीय भाषा के लोग कई-कई हजार रचनाकारों की प्रतियोगिता में l
🔮 सिद्धेश्वर : फिर भी हिंदी भाषी और क्षेत्रीय भाषा के रचनाकारों को एक जैसा और एक समान, एक जैसा पुरस्कार, एक जैसी राशि ? क्या यह पुरस्कार की विसंगतियां नहीं है ? ऐसा विवादास्पद विचार “साहित्य अमृत ” के नए (अप्रैल 2021)अंक में भी, संपादकीय के अंतर्गत उठाया गया है ? आप इस संबंध में क्या कहना चाहेंगीं ?
♦️ उषा किरण खान :उसी समय हिंदी में भी फाइनल राउंड में मेरी किताब रतनारे नयन थी। भामती ( मैथिली) बाजी मार गई। एक ही पुरस्कार का प्रावधान है।
🔮 सिद्धेश्वर : महादेवी वर्मा के बाद आप दूसरी महिला हैं जिन्हें सर्वोच्च सम्मान भारत भारती सम्मान मिला l क्या इसे आप अपना सौभाग्य समझती हैं?
♦️ उषा किरण खान : जी l महादेवी वर्मा के बाद कई लेखकों को यह सम्मान मिला l लेकिन महिला लेखिकाओं मेंयह सम्मान को पाने वाली पहली महिला होने का सौभाग्य मुझे जो प्राप्त हुआ है l
🔮 सिद्धेश्वर : किस उम्र से आप लिख रही हैं ? और आपकी किस रचना ने आपको सर्वाधिक प्रसिद्धि दी !
♦️ उषा किरण खान: मैं करीबन 8 साल की उम्र से लिख रही हूं l लेकिन पहली बार मेरी रचना का प्रकाशन 1977 में हुआ l आंखें तरल रही मेरी पहली रचना थी, इस रचना को मुंशी प्रेमचंद के बेटे श्रीपत राय की मासिक पत्रिका कहानी में जगह मिली थीl इसके बाद धर्मयुग में मेरी रचना प्रकाशित हुई l हसीना मंजिल उपन्यास में मुझे काफी प्रसिद्ध दी, इस बात में कोई दो मत नहींl जब पहला उपन्यास है जो पूर्वी पाकिस्तान के बंटवारे पर आधारित हैl दूरदर्शन ने मेरी इस रचना पर सीरियल भी बनाया है l कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है इस रचना की l
🔮 सिद्धेश्वर : भामती उपन्यास के लिए आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार मिले हैं l क्या मैथिली भाषा में होने के कारण यह पुरस्कार आपको मिले?
♦️ उषा किरण खान : मेरी भामती उपन्यास मैथिली भाषा में है, इसलिए इसे मैथिली भाषा के घेरे में रखी गई l क्योंकि साहित्य अकादमी पुरस्कार किसी एक भाषा के लिए नहीं दी जाती l यह एक ऐसी स्त्री पुरुष की कहानी है जिससे स्त्री के मान मर्यादा और उसकी खेती के बारे में पता चलता है lयह पति-पत्नी के संवेदना और सौभाग्य की अनूठी कहानी है l
🔮 सिद्धेश्वर : इतिहास की छात्रा रहते हुए भी हिंदी साहित्य के प्रति आपकी रूचि कैसे जागी?
♦️ उषा किरण खान : दरअसल में इतिहास की छात्रा जरूरत थी, इतिहास कि मैं प्रोफेसर भी रही लेकिन कॉलेज में इतिहास की पाठ्य सामग्री कम होती थी l तो वह दूसरी भाषा के साथी प्रोफ़ेसर भी मुझे लिखने को प्रेरित करते थेl अंततः मैंने हिंदी साहित्य को ही चुन लिया l
🔮 सिद्धेश्वर: साहित्य में इतने सारे मान सम्मान पाने के बाद आपका अगला पड़ाव क्या है?
♦️ उषा किरण खान : मैं तो अपनी धुन में लिखती हूंl पुरस्कार देने वाले जाने की उन्हें क्या करने हैं l लोग पुरस्कार के लिए रिकमेंड करते हैं l मैं तो अब वहां पर हूं, जहां पर मैं रिकमेंड कर सकती हूं l इसके बावजूद मैं सबसे पहले लेखक हूं l अगला पुरस्कार क्या मिलता है यह तो वही जाने l मैं इस उद्देश्य से लेखन नहीं करती l
🔮 सिद्धेश्वर: आपको लेखन सृजन की प्रेरणा किस लेखक से मिली ?
♦️ उषा किरण खान : प्रेरणा तो हमेशा वरिष्ठ लेखकों से ही मिलती है l बाबा नागार्जुन जैसे कवि की प्रेरणा तो मुझे मिलती ही थी, वे कहा करते थे तुम अच्छा लिखती हो लिखती रहो l उषा प
🔮 सिद्धेश्वर : आपके प्रति बचपन से ही हमारा लगव रहा है और हमारी कई गोष्ठियों में भी आपने अपनी उपस्थिति दर्ज किया है l
अन्य साहित्यिक संस्थाओं की गतिविधियों के प्रति भी आपकी सक्रियता और उपस्थिति को किस दृष्टि से देखा जाना चाहिए ? जहां पर अधिकांश मुख्यधारा के रचनाकार अपने आपको ऐसे आयोजनों में जाना अपमानजनक समझते हैं या फिर वहां जाने से परहेज करते हैं !
♦️ उषा किरण खान : साहित्य तो साहित्य होता है ऐसा मैं मानती हूँ। छोटा और बडा पाठक और श्रोता बनाता है। आप और आपकी टीम किशोर साहित्येच्छुक बालकों की थी, जिसमें मुझे स्फुलिंग नजर आता था। आप परिश्रमी थे। आज साबित हो गया कि मैंने आप सबों की पीठ पर हाथ रख कितना सही काम किया।
🔮 सिद्धेश्वर : मेरी लघुकथा पुस्तक”भीतर का सच ” और कथा पुस्तक ” ढलता सूरज:ढलती शाम ” का लोकार्पण आपने किया था lइसे मात्र संयोग मान लूँ या हमारी लेखन के प्रति आपका आकर्षण और आशीर्वाद ?
♦️ उषा किरण खान :लोकार्पण के समय मैंने जो कहा वही सच है। आप जहाँ जन्मे पले बढ़े वहाँ न जमीन है न आसमान। ऐसे स्थान का लेखक जो लिखता है वह तीखा सच है। ऐसे लेखक का मैं सदा स्वागत करती हूँ। आपका भी करती हूँ।
🔮 सिद्धेश्वर : आपकी अब तक कितनी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है और आप अपनी किन-किन कृतियों को अपेक्षाकृत अधिक पसंद करती हैं ?
📀 उषा किरण खान: अपनी कृतियों को किसी कृति से कमजोर नहीं समझती। सब किसी न किसी समस्या पर आधारित है।
🔮 सिद्धेश्वर : प्रसाद और राबड़ी की तरह, रोज -रोज बंटने वाले सम्मान-पत्र, पुरस्कार को, सरकारी स्तर पर दिए जाने वाले पुरस्कारों से कितना अलग समझती हैं ?
♦️ उषा किरण खान :सम्मान पुरस्कार देने वालों की अपनी भावना होती है। वह कमतर नहीं होती । सो मैं उन सम्मानों का सम्मान करती हूँ।
🔮 सिद्धेश्वर : क्या आपको ऐसा लगता है कि पुरस्कार – सम्मान प्राप्त कृतियां, श्रेष्ठ होती है ?और पाठक उसे ही अधिक अहमियत देता है ?
♦️ उषा किरण खान : सिद्धेश्वर जी हमें यह बात स्वीकार करनी होगी थी कि वे होती तो हैं श्रेष्ठ परंतु जो पुरस्कृत नहीं हैं वे कमतर नहीं होतीं।
🔮 सिद्धेश्वर : उम्र के इस मुकाम पर, जब अक्सर लोग चुक जाते हैं !आप नियमित सृजन कर्म से जुड़ी हुई है !इतनी ऊर्जा कहां से बटोर लाती हैं ?
♦️ उषा किरण खान: मैं उम्र के इस मुकाम पर लिखती हूँ क्योंकि पढती हूँ, समाज और साहित्य के साथ जीनेवालों से बातें होती हैं। गाँव जाकर रहती हूँ। ऊर्जा स्वयं पैदा होती है।
🔮 सिद्धेश्वर : उम्र के इस मुकाम पर आपकी दिनचर्या जानना चाहूंगा, जो आज के लेखकों के लिए प्रेरक साबित हो l
♦️ उषा किरण खान : मैं अभी भी चार बजे जगती हूँ। विशेषकर पढने लिखने का काम तब ही कर लेती हूँ ।
🔮 सिद्धेश्वर: आज लिखी जा रही कहानियों के प्रति आपकी क्या नजरिया है ?
♦️ उषा किरण खान :आज के आधुनिक समय के अनुरूप कहानियाँ लिखी जा रही हैं। कहानियाँ अभी शीर्षविधा है। सशक्त हैं। कहानियों के सबसे अधिक पाठक हैं।
🔮 सिद्धेश्वर : क्या आपको ऐसा नहीं लगता है कि आज के इस व्यस्त समय में, अधिकांश पाठक कहानियों के अपेक्षा लघुकथा पढ़ना पसंद करते हैं ?
♦️ उषा किरण खान: इसे मैं नहीं मानती l लघुकथा अवश्य अधिक पढ़ी जा रही है किंतु कहानियां भी कम नहीं पढ़ी जा रही है
🔮 सिद्धेश्वर : तो क्या यह मान लिया जाए कि, लंबी-लंबी कहानियां या उपन्यास को पढ़ने के दिन अब लद गए हैं !आजकल के पाठक कहानी पढ़ना भी चाहते हैं तो , छोटी-छोटी कहानियां या फिर लघुकथा ?
♦️ उषा किरण खान: उपन्यास बहुतायत में लिखे जा रहे हैं। बिकते भी हैं। पढते हैं तभी तो बिकते हैं। साहित्य में सभी विधाओं की अपनी अहमीयत होती है।
🔮 सिद्धेश्वर: क्या आप समकालीन कविता को पढ़ने में रुचि रखती हैं ? नागार्जुन की लिखी कविताएं,आज भी पाठक खूब पसंद किया करते हैं l जबकि आज बिल्कुल सपाटबयानी यानि गद्य में कविताएं लिखी जा रही है, और ऐसी ही कविताओं को, मुख्यधारा की कविता के रूप में स्वीकार किया जा रहा है, पाठकों के द्वारा नहीं, बल्कि समीक्षकों आलोचकों के द्वारा l
…….. और गीत-गजल जैसी लयात्मक कविताओं को , हाशिये में रखते हुए, ऐसी कविताओं को ही साहित्य अकादमी से लेकर ज्ञानपीठ तक पुरस्कृत भी किया जा रहा है l इसके प्रति आपकी क्या नजरिया है ?
♦️ उषा किरण खान: चाहे जितना विवाद हो साहित्य अकादमी पुरस्कार यूँ ही नहीं दिया जाता। अनामिका की कवितायें सपाट नहीं , न ही बद्रीनारायण की कवितायें लयहीन हैं। दोनों श्रेष्ठ कवि हैं। मैं कवितायें खूब पढती हूँ छंद और लय वाली भी और मुक्त भी। पर यह जरूर है कि लोग बेवजह जो सो लिखते हैं और उसे कविता कह डालते हैं।
🔮 सिद्धेश्वर : तो क्या आपको लगता है कि कविता से भाग रहे पाठक, अब कहानी और लघुकथा के प्रति आकर्षित हो रहे हैं ?
♦️ उषा किरण खान :अपनी रुचि की विधा लोग खोजकर पढते हैं। मैं कविता से नहीं भागती न लघुकथा और कथा से।
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🔮 सिद्धेश्वर : साहित्य की राजनीति में व्याप्त गुटबाजी, खेमे बाज़ी के प्रति आपका विचार रखते हैं ? नारी सशक्तिकरण नारी विमर्श आदि के संदर्भ को आप किस तरह लेती हैं ?
♦️ उषा किरण खान :खेमे बाजी और गुटबंदी के घेरे में रहने वाले साहित्यकार, अपने आप को ही छल रहे होते हैं l साहित्य के इतिहास में उनका कोई अस्तित्व नहीं होता और न ही उनकी रचनाएं समाज में कोई बदलाव लाने की दिशा में सकारात्मक पहल कर पाती है l स्त्री विमर्श, नारी विमर्श,नारी सशक्तिकरण आदि नाम देकर रचना लिखने वाले, अपनी सृजनशीलता पर विश्वास नहीं रखते l
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🔮 सिद्धेश्वर: अधिकांश मुख्य धारा के कवि- कथाकार एक तरफ फेसबुक पर व्यंग्य कसते हुए, उसे नकारने की बात करते हैं lदूसरी तरफ से खुद उससे चिपके रहते हैं l ऐसा विरोधाभास क्यों और किस लिए ?
♦️ उषा किरण खान : मनुष्यों की फितरत है। कवि लेखक भी मनुष्य ही हैं।
🔮 सिद्धेश्वर: कोरोना काल में अधिकांश पाठक फेसबुक यानी डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से साहित्य से जुड़ते चले गए हैं !क्या कोरोना काल के बाद भी, डिजिटल प्लेटफॉर्म की उपयोगिता और लोकप्रियता इसी प्रकार बनी रहेगी ?
♦️ उषा किरण खान : सिद्धेश्वर जी यह बिल्कुल सच है कि कोरोना की तालाबंदी में फेसबुक ने अपनी पूरी क्षमता से जन जन को जोड़ रखा था l
🔮 सिद्धेश्वर : व्यक्तिगत अनुभव के आधार, मुझे लगता है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म, प्रिंट मीडिया के अपेक्षा, अधिकांश पाठकों के करीब है ! क्या आपको भी ऐसा लगता है ?
📀 उषा किरण खान: सिद्धेश्वर जी डिजिटल परफॉर्म पर आप से बेहतर अनुभव और कौन रख सकता है , जो पिछले 2 साल से लगातार डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से साहित्य और साहित्यकार की सेवा कर रहे हैं l
सच तो यह है कि डिजिटल प्लेटफार्म पर आज साहित्य अधिक पढ़े जा रहे हैं l इसलिए डिजिटल प्लेटफॉर्म से दूर रहने वाले ढेर सारे मुख्यधारा के रचनाकार की अब जुड़ गए हैँ l पहले तो लेखकों को पता भी नहीं चलता था कि उनकी रचना कितने लोग पसंद कर रहे हैं या नहीं ! आज हजारों की संख्या में लाइक इस बात का गवाह है कि उनकी नजर से हमारी रचना गुजरी है और उस रचना पर सैंकरों प्रतिक्रियाएं ( कमेंट ) इस बात का सबूत होता है कि इतने सारे लोग हमारी रचनाओं को पढ़कर अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं l पत्र पत्रिकाएं खरीद कर नहीं पढ़ने वाले आम पाठक भी हमारी रचनाओं को बड़ी गंभीरता पूर्वक पढ़ते हैं l
सिद्धेश्वर जी आपने एक जगह बिलकुल सही कहा है कि हमें समय की नब्ज को अवश्य पकड़नी चाहिए l प्रिंट मीडिया का कोई जोड़ नहीं है l इसके बावजूद सोशल मीडिया को नकारा नहीं जा सकता बल्कि कुछ और ज्यादा आंका जा सकता है l हर के घर पर और हर के हाथों पर किताब हो या ना हो, मोबाइल या कंप्यूटर के माध्यम से साहित्य जरूर होता है l
🔮 सिद्धेश्वर : इसके बावजूद प्रिंट मीडिया से जो संतुष्टि मिलती है हम लेखकों को और पाठकों को , वह डिजिटल प्लेटफॉर्म पर नहीं, ऐसा क्यों ?
📀♦️ उषा किरण खान : इस बात का उत्तर मैं पहले दे चुका हूं l प्रिंट मीडिया की संतुष्टि अलग है और सोशल मीडिया की अलग l दोनों का महत्व एक साथ नहीं आंका जा सकता l
🔮 सिद्धेश्वर: प्रतिष्ठित लेखकों के लिए, नए साहित्यकारों को प्रोत्साहित करना या मंच देना क्या समय की बर्बादी है ?
♦️ उषा किरण खान : कोई भी साहित्यकार पहले नया ही होता है l और फिर वह नया हो या पुराना, उसे सीखने और सीखलाने की आवश्यकता तो जीवनपर्यंत बनी रहती है l आप ही सोचिए जब आप नये थे, छोटी मोटी लकीरें खींच लिया करते थे,चित्र बनाने के लिए l और कविता लघुकथा सब कुछ लिखने का प्रयास करते थे आप l यहां तक कि लघु पत्रिका की प्रदर्शनी भी लगाना शुरू कर दिया था आपने, मुझे वह सब कुछ याद है l
आप जब भी हमें, रामधारी सिंह दिवाकर, काशीनाथ पांडे या शैलेंद्रनाथ श्रीवास्तव के साथ याद करते थे , तब हमलोग अवश्य उपस्थित होते थे l आप लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए, समय निकालकर हमलोग, आपके पास जाते थे l
आज आप और आपके मित्रों की सफलता और आप लोगों की यह ऊंचाई देखकर मुझे लगता है कि मैंने आप लोगों के सर पर हाथ रख कर कोई गलत काम नहीं किया था l आप किसी को कलम पकड़ना सीखा रहे हैं, शब्दों का इमारत खड़ा करना सीखा रहे हैँ, खुद सीख रहे हैं और सीखा रहे हैं , आप साहित्य की सेवा कर रहे हैं, नई प्रतिभाओं के भीतर उत्साह पैदा कर रहे हैं, इसमें समय की बर्बादी कैसी ? यह तो अपने समय का सदुपयोग है l इससे बड़ा और सामाजिक सेवा क्या हो सकता है ?
आप किसी को बंदूक चलाना तो नहीं सीखा रहे हैं, आतंकवादी बनना तो नहीं सीखा रहे हैं ? फिर यह अपने श्रम की बर्बादी कैसे हो सकता है ? दुर्भाग्य है कि ऐसा विचार रखने वाले आज हमारे साहित्य समाज में अधिक लोग हो गए हैं, जबकि पहले के साहित्यकार ऐसी भावना अपने हृदय में नहीं रखते थे! आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जैसे संपादक भी थे, जो नई प्रतिभाओं की रचनाओं को संशोधित कर अपनी पत्रिका में छापने का श्रम करते थे l आप ही बताइए आज कितने ऐसे प्रकाशक संपादक हैं ?
🔮 सिद्धेश्वर: आपने हमारे पाठकों और लेखकों को क्या संदेश देना चाहेंगी ?
♦️उषा किरण खान : जो अक्सर साहित्यकार कहा करते हैं कि खूब पढ़िए और तब लिखिए और फिर उसे पुनः दोहराइये l अच्छी-अच्छी रचनाओं को पढ़ने का प्रयास कीजिए l असफलता से नीरूतउत्साहित कदापि ना होइए l आप जितना अधिक पढ़ेंगे उतना बेहतर लिख सकेंगे, इस बात में कोई दो मत नहीं l सोशल मीडिया का सार्थक उपयोग कीजिएl अपनी चुनी हुई अच्छी रचनाएं ही पोस्ट कीजिए, ताकि सोशल मीडिया पर आप की बेहतर छवि बन सके l क्योंकि सोशल मीडिया पत्रिका नहीं की एक बार पढ़कर पुरानी हो जाती है l वहां पर रचनाएं बार-बार रिपीट होने की पूरी संभावना रहती है l
(24) सिद्धेश्वर : सोच विचार पत्रिका आपने देखा है ? कैसी लगी ?
📀 उषा किरण खान : सिद्धेश्वर जी ! आप जब अखिल भारतीय लघु पत्रिका प्रदर्शनी लगाया करते थे, तब मैं उसका उद्घाटन करने जरूर आया करती थी l क्योंकि मुझे आरंभ से ही लघु पत्रिकाओं से विशेष प्रेम रहा है, लगाव रहा है l सोशल मीडिया की तरह ,लघु पत्रिकाएं नए रचनाकारों का पाठशाला है l आज ढेर सारी अच्छी-अच्छी पत्रिकाएं भी बंद हो रही है l कोरोना की मार और सोशल मीडिया का प्रभाव ने प्रिंट मीडिया का कमर तोड़ दिया है l कई मुख्यधारा की पत्रिकाएं भी ई पत्रिका के रूप में प्रकाशित होने को विवश हो गई है l लघु पत्रिकाएं नित बंद हो रही हैl ऐसी विकट स्थिति में सोच विचार जैसी विशुद्ध साहित्यिक पत्रिका का निरंतर प्रकाशन, संपादकद्वय की जीवंतता का परिचय देता है l इस पत्रिका ने नए पुराने रचनाकारों के बीच की रेखा को मिटा दिया है l कोई खेमेबाज़ी नहीं कोई गुट बंदी नहीं l किसी भी पत्रिका की दीर्घायु के लिए यह जरूरी भी है l सोच विचार की अधिकांश रचनाएं कई मुख्यधारा की पत्रिकाओं से बेहतर होती है l खासकर सोच विचार का मिथिलेश्वर अंक, काशी विशेषांक, प्रकाश मनु विशेषांक, रामदरश मिश्र विशेषांक आदि ऐतिहासिक महत्व रखते हैं l🔷♦️🔶
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🕹0 उषा किरण खान का पता :
उषा किरण खान का पता:
आदर्श कॉलोनी,श्री कृष्णा नगर,
पटना 800001
मोबाइल :8987041722
0 सिद्धेश्वर का पता:”सिद्धेश सदन ‘(किड्स कार्मेल स्कूल पर बाएं ), द्वारिकापुरी रोड नंबर 2, पोस्ट : बीएचसी, हनुमान नगर, कंकड़बाग, पटना :800026( बिहार ) ///मोबाइल: 92347 60365)
💿 email:sidheshwarpoet.art@gmail.com
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